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विषय-सूची
सत्त्यासी
गाथा
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मुनिको प्रासुक आहार आदिमें भी ममत्व नहीं करना चाहिए प्रसादपूर्ण प्रवृत्ति ही मुनिपदका
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अंग है
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गाथा मुनिको एकाग्रताका साधन होनेसे आगममें चेष्टा करनी चाहिए ३२ आगमसे हीन मुनि कर्मोंका क्षय नहीं कर सकता मोक्षमार्गी मुनिके आगम ही चक्षु है आगमचक्षुके द्वारा ही सब पदार्थोंका ज्ञान होता है ३५ जिसे आगमज्ञान नहीं है वह मुनि नहीं है
३६ जब तक आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान और संयम इन तीनोंकी एकता नहीं होती तब तक मोक्षमार्ग प्रकट नहीं होता
३७ आत्मज्ञानी जीवकी महिमा ३८ आत्मज्ञानशून्य मनुष्यका तत्त्वार्थश्रद्धान और आगमज्ञान भी अकार्यकारी है
३९ कैसा मुनि संयत कहलाता है? ४० दर्शन, ज्ञान और चारित्रमें एकसाथ प्रवृत्ति करनेवाला मुनिही एकाग्रताको प्राप्त होता है ४२ एकाग्रताका अभाव मोक्षमार्ग नहीं है एकाग्रताही मोक्षका मार्ग है ४४ शुभोपयोगी और शुद्धोपयोगीके भेदसे मुनियोंके दो भेद ४५ शुभोपयोगी मुनिका लक्षण ४६ शुभोपयोगी मुनियोंकी प्रवृत्तिका वर्णन
४७-५८ पात्रभूत तपोधनका लक्षण ५९-६० गुणाधिक मुनियोंके प्रति कैसी प्रवृत्ति करना चाहिए ६१-६३ श्रमणाभासका लक्षण ६४ समीचीन मुनिको दोष लगानेवाला मुनि चारित्रहीन है ६५
मुनिपदक अंग, अंतरंग और बहिरंगके भेदसे दो प्रकारका है १७ भावहिंसारूप अंतरंग भंग सब प्रकारसे छोड़नेयोग्य है अंतरंग भंगका कारण होनेसे परिग्रह सर्वथा छोड़नेयोग्य है १९ निरपेक्ष त्यागके बिना मुनिका आशय शुद्ध नहीं होता २० अंतरंग संयमका घात परिग्रहसे होता है
२१ परमोपेक्षारूप संयम धारण करनेकी शक्ति न होनेपर मुनि आहार तथा संयम, शौच और ज्ञानके उपकरण रख सकता है २२ अपवादमागी मुनिके द्वारा ग्रहण करनेयोग्य परिग्रहका वर्णन २३ उत्सर्गमार्ग ही वस्तुधर्म है अपवाद मार्ग नहीं
२४ यथार्थ उपकरण कौन है? २५ इस लोकसे निरपेक्ष और परलोककी आसक्तिसे रहित मुनि योग्य आहारविहार कर सकता है २६ अनासक्त भावसे आहार करनेवाले मुनि निराहार कहलाते हैं २७ मुनि युक्ताहारपन कैसे होता है? २८ मुक्ताहारका स्वरूप २९ उत्सर्गमार्ग और अपवादमार्गकी मित्रतासे ही चारित्रकी स्थिरता होती है उत्सर्गमार्ग और अपवादमार्गके विरोधसे चारित्रमें स्थिरता नहीं आ सकती
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