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ब्यानवे
कुंदकुंद-भारती
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गाथा वह सम्यग्दृष्टि है जिनसूत्रके व्यवहार और निश्चय नयसे जाननेका फल सूत्रके अर्थ और पदसे रहित जीव मिथ्यादृष्टि है हरिहरके तुल्य मनुष्य सिद्धिको प्राप्त नहीं होते
८ स्वच्छंद -आगमके प्रतिकूल चर्चा करनेवाला पापी तथा मिथ्यादृष्टि है दिगंबर मुद्रा ही मोक्षका मार्ग है,
अन्य सब अमार्ग है संयमसे सहित और आरंभ तथा परिग्रहसे रहित मनुष्य वंदनीय है ११ बाईस परिषहोंको सहनेवाले मुनि वंदना करनेयोग्य हैं
१२ दिगंबर मुद्राके सिवाय जो वस्त्रधारी संयमी है उनसे इच्छाकार करना चाहिए १३ इच्छाकारके महत्त्वको जाननेका फल
१४ आत्माको जाने बिना यह जीव संसारी ही कहा गया है १५ आत्माके श्रद्धान करनेकी प्रेरणा १६ साधुके बालकी अनी बराबर भी परिग्रह नहीं होता
१७ दिगंबर मुद्राका धारी होकर जो तिलतुषमात्र भी परिग्रह रखता है वह निगोदको प्राप्त होता है १८ जिस लिंगमें परिग्रहका ग्रहण है वह गर्हणीय है
१९ पंच महाव्रत और तीन गुप्तियोंको धारण करनेवाला संयमी ही वंदनीय है
२० दूसरा लिंग उत्कृष्ट श्रावकोंका है २१ तीसरा लिंग क्षुल्लिका तथा
गाथा पृष्ठ आर्यिकाओंका है
२२ २६८ वस्त्रधारक, तीर्थंकर भी हो तो भी । मोक्षको प्राप्त नहीं होता २३ २६८ स्त्रियोंके दिगंबर दीक्षा न होनेका कारण
२४-२६ २६८-२६९ इच्छारहित मनुष्यही सब दुःखोंसे निवृत्त होते हैं २७२६९
चारित्तपाहुड (चारित्र प्राभृत) मंगलाचरण और गंथ करनेकी प्रतिज्ञा
१-२ २६९ ज्ञान, दर्शन और चारित्रका |स्वरूप
३ २६९ सम्यक्त्वाचरण और संयमाचरणके भेदसे दो प्रकारके चारित्रका कथन
४-५ २७० सम्यक्त्वाचरणका वर्णन ६-२० २७०-२७२ संयमाचरणके दो भेद -- सागार और अनगार
२१ २७२ सागार - गृहस्थाचरणके ग्यारह भेद २२ २७२ सागार संयमाचरणके अंतर्गत बारह व्रतोंका वर्णन
२७२ पाँच अणुव्रतोंका वर्णन तीन गुणव्रतोंका वर्णन
२७३ चार शिक्षाव्रतोंका वर्णन सागाराचरणका समारोप अनगार संयमाचरणका वर्णन
२७३ पंचेंद्रिय संयमका वर्णन
२७३ पाँच महाव्रतोंका वर्णन ३० महाव्रतका निरुक्तार्थ
२७४ अहिंसाव्रतकी पाँच भावनाएँ ३२ २७४ सत्यमहाव्रतकी पाँच भावनाएँ ३३ २७४ अचौर्य महाव्रतकी पाँच भावनाएँ ३४ २७४ ब्रह्मचर्य महाव्रतकी पाँच भावनाएँ ३५ अपरिग्रह महाव्रतकी पाँच भावनाएँ ३६ २७४ पाँच समितियोंका वर्णन
२७४ सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन तथा
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