Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ उपसंहार (आभार दर्शन) ___ इस ग्रंथका प्रकाशन श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगासव ओरसे हो रहा है। वर्तमान संदर्भमें जैन गृहस्थ आदर्शपूर्ण क्रियाओंकी उपेक्षा करने लगे हैं आशा है कि इस ग्रंथके अध्ययन-चिंतनसे श्रावकोंकी आदर्श क्रियाओंके पालनकी उदासीनत शीघ्र ही दूर होगी, क्योंकि इसमें कविवर किशनसिंहने उन समस्त क्रियाओंका वर्णन विस्तृत ए सुंदर रीतिसे किया है। ग्रंथकी पाण्डुलिपि तैयार करने, पाठ मिलान करने एवं पाठभेद लेनेमें सागर विद्यालयवे ब्र० राकेश, ब्र. जिनेश, ब्र. महेशकुमार आदिका पर्याप्त सहयोग मिला है। हस्तलिखित प्रतियोंकी प्राप्ति भी इन्हींके माध्यमसे हुई है। अतः इन सब सहयोगी महानुभावोंका आभार प्रकट करता हूँ। आद्य वक्तव्य, अपनी अस्वस्थताके कारण, जैसे मैं चाहता था वैसे नहीं लिख सका, इसका खेद है। एक क्रियाकोष पं० दौलतरामजी द्वारा वि० संवत् १७९५ में लिखित प्रचलित है। उसकी प्रतियाँ अब अनुपलब्ध है। अतः उसका भी हिन्दी अनुवाद सहित एक संस्करण प्रकाशित होना उपयोगी सिद्ध होगा। उसमें कई स्थल चर्चित विषयोंकी स्पष्टताके लिये पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं। अन्तमें, रही त्रुटियोंके लिये मैं विद्वज्जनोंसे क्षमायाचना करता हुआ जैन गृहस्थोंसे अनुरोध करता हूँ कि वे अपना जीवन ‘क्रियाकोष'में बतलाये हुए आचारके अनुरूप निर्माण कर सदाचारके सोपानपर आरोहण करेंगे। विनीत पन्नालाल जैन साहित्याचार्य For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 348