Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 4
________________ खरतरों ! तुम मेरे लिये भले बुरे कुच्छ भी कहो, मैं उपेक्षा हो करुंगा । पर पूर्वाचार्यों के लिये तुम लोग, हलके एवं नीच शब्द कहते हो उन को मैं तो क्या पर कोई भी सभ्य मनुष्य सहन नहीं करेंगे जैसे तुम लोगोंने कहा है कि " तुम्हारा रत्नप्रभसूरि किस गटरमें छीप गया था ? " " रत्नप्रभसूरि हुए ही नहीं हैं xx ओसियों में रत्नप्रभ सूरिने सवाल बनाये भी नहीं हैं श्रोसवाल तो खरतराचार्योने ही बनाये हैं।" इत्यादि. ............................. .. . . . खरतरों के अन्याय के सामने मेने पन्द्रह वर्ष तक धैर्य रक्खा पर आखिर खरतरोंने मेरे धैर्य को जबरन तोड़ डाला जिसकी यह " पहली अवाज है" ............................. .. " अरे खरतरों ! रत्नप्रभसूरि मेरानहों पर वे जगत्पूज्य हैं। तुम्हारे जैसी कोई व्यक्ति कह भी दें इससे क्या होने का हैं ?" मुझे ऐसी किताब लिखने की आवश्यकता नहीं थी पर यह तुम्हारी ही प्रेरणा हैं कि मुझे लाचार होकर ऐसा कार्य में हाथ डालना पड़ा हैं । आचार्य रत्नप्रभसूरिने श्रोसवाल बनाया जिस के लिये तो आज अनेक प्रमाणिक प्रमाण उपलब्ध हैं पर क्या तुम भी तुम्हारे पूर्वजों के लिये एकाध . प्रमाण बतला सकते हो? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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