Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
View full book text
________________
चतुर्थोऽध्यायः (२) धनुर्बन्ध :
वः स्तु 5 नो जिन्त न ऽ ये श्रि णरच व्य से न्द्र ती
न्तज्ञानसन्तानेनिध्यात भुवनत्र
अनन्तज्ञानसन्तननिध्यातभुवनत्रयः । यतीन्द्रसेव्यचरणः श्रियेऽनन्तजिनोऽस्तु वः ।
१०९
११०
(३) वाणवन्ध
क
को चता म
पू
करोतु धर्मोनिमां
?
सु
लोकनतश्रियम्
मुखेन्दुचन्द्रिकापूररतामरचकोरकः । करोतु धर्मो निर्मारः सुरलोकनतः श्रियम् ॥
काव्यानुशासनम्

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92