Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 63
________________ चतुर्थोऽध्यायः (१०) मुरजबन्ध : ने श भ मिना मिनां त विना 7 विना थजि थघ त नावि ना 'वि. ना ग नाग नेमिनाथ जिनाविघ्नं शमितं तनु नाविभ । भविनानुत नागश्री स्त्वां विनाथ घनागसाम् ॥ भ नं. श्री साम ११७ ११८ (११) चक्रबन्ध : प्र स कीर्ति Gho बुक में यह 4 श से (7) 40 150 1F 1 18 स र्वं कृ ब. अ तो वा रभ सि सौ ह ho द क ले काव्यानुशासनम् hte F @ कला लेत सर्वं कृन्ततु कल्मषं स भवतो वाग्मत्सितासौहदः सगीतिश्रितविश्वपार्श्वभगवत् कूटस्थितोऽमर्महा । निर्मारः परवारिदप्रभतनुर्यस्य स्फुय हारभा भात्कीर्तिः सकले सदावनितले दत्तेशहासप्रभा ॥ 12 K

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