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प्रकाशकीय प्रज्ञामहर्षि उपाध्याय अमरमुनिजी कवि, विचारक, दार्शनिक लेखक एवं प्रवक्ता हैं । कवि एवं चिन्तक तो वे स्वभाव से ही हैं। साहित्यिक क्षेत्र में सर्व प्रथम उनका चिन्तन एवं अनुभव काव्यकविता के रूप में सामने आया। वस्तुतः काव्य- कविता, कवि हृदय की उर्वर - भूमि का प्रतिफल है। कवि का हृदय इतना सरल, सुकोमल एवं संवेदनशील होता है, कि मानव - जगत् की प्रत्येक धड़कन को अपनी भावना - रागिनी में संजोकर मानव जगत् के समक्ष प्रस्तुत करता है। कवि की भावनाएं मानवीय धरातल पर उतर कर विश्व की सुख - दुःख, हर्ष - शोक, संयोग - वियोग, प्रसन्नता - खिन्नता आदि जितनी भावनाएँ हैं, सब को धूप - छाया रूप में छिटकती हुई शब्द स्वरूप प्राप्त करती हैं। श्रद्धय उपाध्यायश्रीजी 'काव्याञ्जलि' में जीवन का यथार्थ चित्रण करके युग के अनुरूप मानव को जीवन की सही राह दिखा रहे हैं।
कविश्रीजी के काव्य में कवि हृदय की विशालता, संवेदनशीलता तो है ही, प्रत्युत उनके दार्शनिक, आध्यात्मिक, तात्विक धार्मिक, साहित्यिक एवं समीक्षात्मक लेखों में भी उनके कवि-हृदय के स्पष्ट दर्शन होते हैं।
कविश्रीजी के साहित्य जीवन का प्रारम्भ कविता, गीत एवं भजनों से होता है। उस समय भी कविश्रजी के विचारों में, चिन्तन में गहराई एवं सत्य को निर्भय एवं निर्द्वन्द्व भाव से अभि. व्यक्त करने का साहस स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। यही कारण है कि उनके काव्य एवं गीतों की ज्योतिर्धर आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज, आचार्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज एवं ( उस समय के उपाध्याय ) आचार्य श्री आत्मारामजी महा
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