Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 6
________________ ध्रुव, अध्रुव, एक जीवकी अपेक्षा काल, अन्तर, नाना जीवोनी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाय और अल्पच हुत्य । इस प्रकार इन अनुयोगद्वारोंका नाम निर्देश कर राई प्रथा उनके माधामसे मूलप्रकृति उदीरणाका विषेचन किया गया है। सुगम होनेरो यहाँ उनका विस्तारसे स्पष्टीकरण नहीं करेंगे । एकैकउत्तरप्रकृतिपदीरणा इसके बाद एवंक उत्तरप्रवृत्ति उदारणामा उल्लेख कर उच्चारणाके बलले २४ अनुयोगद्वारोंका आलम्बन लेकर उराका विचार किया गया है । १७ अनुयोगद्वार तो पूर्वोक्त ही हैं। इनमें सर्व, नोसर्व, उत्तृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य, अजघन्य और सन्निकर्ष इन ७ अनुयोगद्वारोंके मिलानेपर २४ अनुयोगद्वार हो जाते हैं। मोहनीयकी २८ प्रकृतियोंमेंसे प्रत्येक की उदारणाका विचार. एकक प्रकृतिउदीरणा अधिकार में विस्तार किया गया है । सुगम होनेसे इनका विचार भी हम यहां पर अलगमे नहीं कर रहे हैं । प्रकृतिकानउदीमार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज इस प्रकार इतना विवेचन करनेके वाद चुणिमुत्र और उच्चारणा दोनोंका आलम्बन लेकर प्रवृतिस्थानउदीरणाका विचार किया गया है। प्रकृतियांवो रथान अर्थात् प्रवृतिसमूहका नाम प्रकृतिस्थान है और उसकी उदीरणाको प्रवृतिस्थानउदीरणा कहते हैं । एक कालमें जितनी प्रवृतियोंकी अदीरणा एक जीवके सम्भव है उतनी प्रकृतियोंके ममुदायको प्रतिस्थान उदीरणा संज्ञा है यह उक्त कथाका तात्पर्य है। इसके १७ अनुयोगद्वार हैं-~समुल्कीर्तनाने लेकर अल्पबहुल तक । पाथ ही भुजगार, पदनिक्षेप और बृद्धि ये नीन अनुयोगद्वार और जानने चाहिए । मोहनीय वमकी उत्तर प्रकृतियों के उदीरणाम कुल प्रवेशस्थान ६ हैं—लोन प्रकृतिक स्थानको छोड़कर एक प्रकृतिक स्थानसे लेकर दस प्रवृतिका स्थान लक, क्योंकि तीन प्रवृत्तिक कोई उदीरणास्थान नहीं है । इनका यहां मांगोपांग विचार किया ही है। इन स्थानोभने प्रत्येक के कितने भंग हैं और कौन किस गुणस्थानमें होता है इसो विशेष विचारके लिए आचार्य यतिवृपभने तीन माघाएँ अपने चूर्णिसूत्राम उस्त की है । प्रश्नम गाथामें प्रत्येक स्थानके भंगोंको संख्या दी है तथा दूसरी और तीसरो गाथामें किस गुणस्थानमें कौन कौन और कितने उदीरणास्थान होते हैं इसका विवर दिया है। इसप्रकार इन गाथाओं द्वारा स्वामित्वका विचार कर तथा आगे एक जीकी अपेक्षा काल आदि शेष अनुयोगद्वारोंका निरूपणकर १७ अनुयोगद्वार समाम किये गये हैं। इसके बाद भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि इन अनुयोगद्वारोंका आलम्बन लेकर प्रकृतिस्थान उदीरणाका विचार किया गया है। इतने विचार के बाद इस अधिकारके सभाम होनेवो साथ प्रतुति उदीरणा का कथन समाप्त होता है। प्रकृतिप्रवेश ___ आगे प्रकृतिप्रवेश प्रकरणका अधिकार है जिसकी सूचना वेदक अनुयोगद्वारको प्रश्रम गाथाके दूसरे पादसे मिलती है। इस प्रकरणमें उदयावलिमें प्रवेश वारनेवालो उदय और अनुदयरूप प्रकृतिमात्रका ग्रहण किया गया है, इसीलिए इसका प्रकृतिप्रवेश यह नाम सार्थक है । इसके दो भेद हैं-मूल प्रवृतिप्रवेश और उत्तर प्रकृतिप्रवेश । उत्तर प्रकृतिप्रवेश दो प्रकारका है. पाकक उत्तर प्रकृतिप्रवेश और प्रकृतिस्थान प्रवेश। सुगम होनेसे यहाँ मूल प्रकृतिप्रवेश और एकैकडलर प्रकृतिप्रवेश अधिकारका व्याख्यान न कर मात्र प्रवृतिस्थानप्रवंश अधिकारका समुत्कीर्तना आदि १५ अयोगद्वारों तथा भुजगार, पदनिप और वृद्धि इन अधिकारों द्वारा निरूपण किया गया है।

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