Book Title: Karni Ka Fal Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education Board View full book textPage 4
________________ CCCCC प्रस्तावना जैन परम्परा में त्रैसठ शलाका पुरुष प्रसिद्ध है। शलाका पुरुष का अर्थ है अँगुलियों पर गिने जाने वाला प्रभावक व्यक्तित्व । आज की भाषा में अतिविशिष्ट पुरुष । जिनका प्रभावक व्यक्तित्व बल-पौरुष शक्ति शौर्य-ज्ञान एवं ऐश्वर्य आदि सभी दृष्टि से अद्वितीय हो । २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ प्रति वासुदेव कुल ६३ शलाका पुरुष एक अवसर्पिणी काल में होते हैं। इस युग के १२ चक्रवर्तियों में आदीश्वर पुत्र भरत प्रथम और ब्रह्मदत्त बारहवाँ अन्तिम चक्रवर्ती हुए। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का समय भगवान अरिष्टनेमि के निर्वाण पश्चात् (महाभारत काल के बाद) और भगवान पार्श्वनाथ के जन्म से पूर्व मध्यकाल में माना जाता है। अर्थात् ईस्वी पूर्व ४०० से पूर्व किसी समय में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की शासन स्थिति संभव है। ब्रह्मदत्त का जीवन बहुत ही उथल-पुथल युक्त रहा है। एक ओर उसके जीवन में आशंका, भय, पीड़ा और कष्ट की अँधेरी अमावस छाई है, तो दूसरी ओर षट्खण्ड चक्रवर्ती साम्राज्य के भोग-ऐश्वर्य की चटक चांदनी छितराई हुई दीखती है। उत्तराध्ययनसूत्र में उसके पूर्व जन्मों की कथा -चित्त-संभूत नाम से एक रोचक शिक्षाप्रद और अत्यन्त संवेदनशील चरित्र के रूप में वर्णित है। बड़े भाई चित्तमुनि वैराग्य और ज्ञान से भरी बातें सुनाकर चक्रवर्ती को भोगों से विरक्त होने की प्रेरणा देते हैं । किन्तु ब्रह्मदत्त जीवन एवं वैभव की क्षणभंगुरता को समझते हुए भी दलदल में फँसे हाथी की तरह उनसे छूटने में अपनी असमर्थता बताता है । अन्त में भोगासक्ति और प्रतिहिंसा की भावना से ग्रस्त चक्रवर्ती बड़ी दयनीय मृत्यु को प्राप्त होता है। प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान LOOK LEARN Jain Education Board PARASDHAM मूल्य : २०/- रु. Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai- 400077. Tel : 32043232.Page Navigation
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