Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 21
________________ करनी का फल प्रजाजनों और मित्र राजाओं ने धूमधाम के साथ ब्रह्मदत्त का राज्याभिषेक किया। प्रधानमंत्री धनु ने आशीर्वाद देते हुए कहा कुमार ब्रह्मदत्त ने १६ वर्ष तक भयानक जंगलों में घूम-घूम कर जो अगणित कष्ट, पीड़ा व संकट सहे हैं उन्हीं कष्टों का मीठा फल है, यह न्याय की विजय ! 2 17 राजा ब्रह्मदत्त ने सभी का अभिवादन स्वीकारते हुए उत्तर दिया मैं धर्म और न्याय की रक्षा करता हुआ, अपनी प्रजा को ही माता-पिता मानकर उसकी सेवा करता रहूँगा। Ap 63 r राजा ब्रह्मदत्त के अद्वितीय पराक्रम और न्याय नीति के कारण धीरे-धीरे सैकड़ों राजा उसकी छत्र छाया में आ गये। कुछ वर्षों बाद ब्रह्मदत्त राजा ने भरत खण्ड की दिग्विजय यात्रा प्रारम्भ की। १६ वर्ष तक दिग्विजय अभियान में अनेकों युद्ध आदि संघर्षों का सामना करते ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सम्राट् बनकर कम्पिलपुर लौटा

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