Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 33
________________ करनी का फल TUWF एक बार ब्रह्मदत्त के पिता का परिचित एक चक्रवती ने चकित होकर कहा- JOणन ब्राह्मण रामसभा में आया। ब्राह्मण द्वारा की गई विप्रदेव ! वह भोजन बड़ा गरिष्ट स्तुति से प्रसन्न होकर ब्रह्मदत्त बोला और उत्तेजक है "आप हजम नहीं विप्रदेव ! आपको / महाराज ! मेरी इच्छा है। कर सकोगे? कुछ और माँग लो।। क्या चाहिए? जो आपके लिए जो स्वादिष्ट इच्छा हो माँग लो। भोजन बना है, आज पूरे परिवार के साथ मैं वही| राजन् ! बस यही मेरी एक भोजन करूं? इच्छा है। 74 CIDID DIODOLOP WO जा चक्रवर्ती ने अपने रसोईये को आदेश दिया। किन्तु उस गरिष्ठ भोजन के प्रभाव से सभी में ब्राह्मण की पत्नी, पुत्री, पुत्र, पुत्रवधू सभी ने भयंकर कामोत्तेजना जाग उठी। पुत्री-पुत्रवधू का वह अत्यन्त गरिष्ठ भोजन किया शर्म-लिहाज भूलकर सभी पशु की तरह काम-क्रीड़ा करने लगे। वाह! क्या स्वादिष्ट भोजन 89 146 ९

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