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करनी का फल
मुनि के मुख से पाँच जन्मों की कहानी सुनकर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने भाव-विह्वल होकर कहाभी लोग चकित हो गये
कर्मों के कारण जीव कैसे-कैसे सुख-दुःख पाता है ?
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| मुनि ने कहा
चक्रवर्ती ! तुम जान-बूझकर भूल कर रहे हो। हमने कर्मों के कारण ही पूर्व जन्मों में इतने कष्ट भोगे, उन अशुभ कर्मों का नाश तप के द्वारा ही हुआ। अब फिर भोगों में आसक्त होकर हिंसा/ आदि क्रूर कर्म मत करो
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मुनिवर ! जैसे हाथी किसी गहरे दल-दल में फँस जाता है, और निकलने का भरसक प्रयत्न करने पर
भी वह उस कीचड़ से निकल नहीं पाता, वही दशा मेरी हो रही है।
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मुनिवर ! यह विशाल ऐश्वर्य आपका ही है, इस युवावस्था में आप भी इसका उपभोग करें। बुढ़ापा आने पर संयम लेकर आत्म-साधना कर लेना
ब्रह्मदत्त ने कहा
मुनिवर ! यह तो मैं भी जाता हूँ कि हिंसा आदि का अन्तिम परिणाम दुर्गति ही है, परन्तु
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परन्तु
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