Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 36
________________ करनी का फल ब्राह्मण के पूरे परिवार को मौत के घाट उतारकर भी ब्रह्मदत्त की बदले की हिंसा भावना शान्त नहीं हुई। वह समूची ब्राह्मण जाति से ही द्वेष और घृणा करने लगा। उसने आदेश किया ब्राह्मणों की आँखें निकाल-निकाल कर थाल में भरकर मेरे सामने लाओ । बुद्धिमान मंत्री ने सोचा चक्रवर्ती के मन प्रतिशोध की अग्नि धधक रही है, समझाने से बुझेगी नहीं । | उसने लसोड़े (लेसवा) की गुठलियाँ निकाल कर उनसे थाल भरकर राजा के सामने रखा गुठलियों के चिपचिपेपन के | कारण अन्धे महाराज ने उसे ही आँखें समझा-अत्यन्त क्रूरतापूर्वक वह उन्हें मसलता और अपनी आँखें फोड़ने के बदले की भावना से मन में सन्तोष अनुभव करता । इसप्रकार जीवन के अन्तिम समय में अंधा ब्रह्मदत्त क्रूर और रौद्र हिंसक भावनाओं में जलता-जलता आयुष्य पूर्ण कर सातवें नरक में गया। समाप्त आधार : उत्तराध्ययनसूत्र अ. १२, त्रिषष्टिशलाका. पर्व ९, सर्ग १

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