Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 27
________________ करनी का फल | श्मशान में नमुचि चाण्डाल के सामने गिड़गिड़ाने लगा- चाण्डाल ने कुछ विचार मुझे मारो मत, तुम जो माँगोगे वही किया फिर कहा- मेरे दो पुत्र मुझे जान से भी दे दूंगा। कहोगे वही करूंगा। ज्यादा प्यारे हैं, तुम इनको संगीत आदि कलाएँ सिखाकर पण्डित बना दो, तो मैं तुम्हे नहीं मारूंगा। नमुचि दोनों चाण्डाल पुत्रों को नाटक-संगीत आदि कलाएँ एक दिन चाण्डाल ने नमुचि को अपनी पत्नी के साथ सिखाने लगा। दोनों भाई शीघ्र ही पारंगत हो गये। पापाचार करते देखा। उसे बहुत क्रोध आया। रात को सोये-सोये वह क्रोध में बड़बड़ाने लगाAIMER नीच, नमुचि ! जिस थाली में खाता है उसी में छेद कर रहा है। कल ही छुरे से इसका सिर उड़ा दूंगा।" आ. ठ9A दोनों भाई पिता को क्रोध में बड़बड़ाता सुनकर | | घूमता-घूमता वह हस्तिनापुर के चक्रवर्ती सनत्कुमार कॉप गये। उन्होंने जाकर नमुचि को कहा- की सभा में पहुँचता है। उसकी विद्या और बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर चक्रवर्ती ने कहागुरु जी, आप यहाँ से भाग जाइये। अन्यथा कल सुबह बापू आज से नमुचि राज्य ) आपको जान से मार डालेगा। का महामंत्री होगा। STOae नमुचि रात को ही घर से भाग गय।

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