Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ करनी का फल एक दिन चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त अपनी रानियों के साथ रंग बार-बार विस्मित भाव से एकटक वह भवन में बैठा मधुर संगीत और नाटक आदि से मनोरंजन उस गुलदस्ते को देखने लगा। एकाग्र कर रहा था। उसी समय दासी ने फूलों का सुगंधित होने पर उसे अनुभव हुआगुलदस्ता भेंट किया। वाह कितना इस प्रकार के सुगंधित सुन्दर गुलदस्ता है। गुलदस्ते और नाटक के मनोहर दृश्य मैंने पहले भी कहीं देखे हैं। 0.00 गुलदस्ते में बनी हंस मयूर आदि की सुन्दर आकृतियाँ देखकर चक्रवर्ती का मन मुग्ध हो उठा। सोचते-सोचते ब्रह्मदत्त अतीत की स्मृतियों में गहरा खो गया। उसे पुरानी घटनाएँ याद आने लगीं-वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। होश आने पर बदहवास सा बड़बड़ाने लगा दशार्णपुर में दास थे फिर बने कलिंजर में मृग-दीन, गंगा तट पर हंस युगल चाण्डाल बने काशी में हीन, देव लोक में देव बने फिर बिछड़ गये, हम कहाँ गये? # - लोग आश्चर्य से उसका बड़बड़ाना सुनते रहे। # दासा दसण्णए आसी मिया कालिंजरे णगे। हंसा मयंग तीराए सोवागा दासि भूमिए। देवा य देव लोयम्मि आसि अम्हे महिढ़िया....

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38