Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 19
________________ करनी का फल पालाण्याललाDIDI ब्रह्मदत्त ने दीर्घराज के पास अपना दूत भेजा। दूत ने आकर दीर्घराज से कहा स्वर्गीय महाराज ब्रह्म का यह राज्य आपके पास धरोहर के रूप में था। आपने इसकी रक्षा करने के बदले इसे ही हड़प लिया। अब आप कुमार ब्रह्मदत्त को राज्य सौंपकर उनसे क्षमा माँग लो। aa अहंकारी दीर्घराज गुस्से से बोलाराज्य भिक्षा में नहीं। मिलता, जिसकी भुजाओं में बल है, वही राज्य लक्ष्मी का उपभोग कर सकता है। आखिर ब्रह्मदत्त और दीर्घराज की सेनाओं में घनघोर युद्ध हुआ। क्रुध दीर्घराज ब्रह्मदत्त के साथ ब्रह्मदत्त अद्भुत पराक्रमी तो था ही, न्याय नीति का बल भी था। मल्ल-युद्ध करन लगा। उसके साथ/ उसने दीर्घराज की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया।

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