Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 18
________________ करनी का फल एक दिन ब्रह्मदत्त घूमता-घूमता काशी पहुंच गया। ब्रह्मदत्त के आने की खबर सुनकर स्वयं काशीराज स्वागत सत्कार के लिए नगर के बाहर आये। काशीराज उसके तेजस्वी रूप और सैन्यबल को देखकर गद्गद् हो गये। ब्रह्मदत्त ने उन्हें दीर्घराज के षड्यन्त्रों की कहानी सुनाकर कहातात ! अब उस दुष्ट के पापों का कुमार ! यह सब तो आपके घड़ा भर गया है। जब तक मैं बांये हाथ का खेल मात्र है। उस दुराचारी का विनाश नहीं परन्तु युद्ध से पहले शुभकार्य करूंगा, चुप नहीं बैतूंगा।। भी होना चाहिए। UEST P ofWORa प्रचण्ड LATION | काशीराज की पुत्री के साथ ब्रह्मदत्त का पाणिग्रहण हो गया। फिर सबने मिलकर निर्णय किया | फिर उन्होंने अपनी कन्या कनकवती को बुलाकर कहायह मेरी पुत्री कनकवती है। तात ! गुरुजनों की तुम्हारे पिता और मेरे मित्र आज्ञा स्वीकारना ब्रह्म को मैंने वचन दिया था, मेरा धर्म है। आप इसका विवाह तुम्हारे यह शुभकार्य साथ करूंगा। सम्पन्न कीजिये। अब विश्वासघाती दीर्घराज को उसकी दुष्टता का दण्ड देना चाहिए। । Mad महामंत्री धनु और उसका पुत्र वरधनु भी ब्रह्मदत्त के विवाह की सूचना पाकर काशी आ पहुंचे।

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