Book Title: Karni Ka Fal
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 14
________________ अरे यह तो वरधनु की आवाज है। लगता है सैनिक आ गये? मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिये। करनी का फल भागता-भागता वह तापसों के एक आश्रम में पहुँच गया। आश्रम के कुलपति ने युवक को इस हाल में देखा तो पूछावत्स ! तुम कौन मैं एक यात्री हूँ। कुछ हो? इतने घबराये हुए क्यों हो? चोर लुटेरे मेरा पीछा कर रहे हैं। ब्रह्मदत्त जंगल में से छुपता हुआ भाग निकला। ब्रह्मदत्त ने उन्हें अपना असली परिचय नहीं दिया। तभी कुलपति ने उसकी छाती पर श्रीवत्स का चिन्ह देख लिया, उसने मुस्कराकर कहा आप सामान्य यात्री नहीं, कोई तेजस्वी होनहार युवक हैं। निर्भय होकर अपना परिचय बताइये-हम आपकी सहायता करेंगे। HarihANA कुलपति ने कुमार को छाती से लगा लिया कुमार ने कहा- आचार्य, मैं कम्पिलपुर के स्वर्गीय महाराज ब्रह्म का पुत्र हूँ। दुश्मन मेरा पीछा कर रहे हैं? ओह ! तुम कुमार ब्रह्मदत्त हो? तुम्हारे जापिता तो मेरे घनिष्ट मित्र थे.... Agro COMRAJ KC6Cu Pub Milam HON

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