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ब्रह्मदत्त ने पिछली घटना सुनाकर कहा
गुरुदेव,दु दीर्घराज नीच और दुराचारी है। वह मुझे जान से मार डालना चाहता हैं
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कुमार ! मैं तुम्हें शस्त्र विद्या और राजनीति का शिक्षण दूँगा ताकि तुम अत्याचारियों का नाश कर सक
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करनी का फल
एक दिन आचार्य ब्रह्मदत्त के युद्ध-कौशल की परीक्षा लेने के लिए उसे एक बीहड़ वन में सरोवर के किनारे अकेला बैठाकर चले गये और छुपकर जोरदार हस्ति-नाद किया। हस्ति-नाद से उत्तेजित जंगली हाथी वन से निकलकर सरोवर की तरफ भागे। विफरे हाथियों ने ब्रह्मदत्त पर आक्रमण कर दिया। ब्रह्मदत्त अकेला ही उन जंगली हाथियों से युद्ध करने लगा।
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आचार्य ने ब्रह्मदत्त को सभी प्रकार की युद्धकला और राजनीति का प्रशिक्षण दिया। अनेक वर्षों के कठोर प्रशिक्षण से ब्रह्मदत्त अद्भुत योद्धा बन गया।
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