Book Title: Karmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Author(s): Shivsharmsuri, Gunratnasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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प्रस्तावना
उपशमनाकरण पर प्रस्तुत प्रेमगुणा टीका का सर्जन
सिद्धांतमहोदधि कर्मसाहित्य निष्णात पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा ने राजस्थान की पवित्र भूमि पिंडवाडा में जन्म लिया । पूज्यश्री को दिक्षा के लिए महासंग्राम खेलना पडा । उस जमाने में दीक्षा लेना कोई सामान्य व्यक्ति का काम नहीं था । दीक्षा के लिए पूज्यश्रीने व्यारा से सुरत तक ३४माईल तक पैदल चले और तीर्थाधिराज शत्रु जय की महामहीम पावन धरा पर उग्रविहारी, सकलागम रहस्यवेदी पूज्यपाद दानसूरीश्वरजी महाराजा के पास दीक्षा अंगीकार की ।
दीक्षा लेकर ५ समिति और ३ गुति इन आठ प्रवचनमाता की प्राण से भी प्यारा माना । परिणाम स्वरूप आप श्री का संयम, ब्रह्मचर्य इतना सुविशुद्ध बना कि आपश्री के वस्त्रों में भी सुगंध आती थी ।
पूज्यश्री का स्वाध्यायरस इतना गंभीर था कि वृद्धावस्था में मी रात्रि में कम्मपयडि जैसे गहन शास्त्रों का पुनरावर्तन करते थे, कभी-कभी रात्रि में तीर्थ स्थानों का चिंतन करते उन्हें भावभरी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते थे ।
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पूज्यपादश्री निस्पृहता की गरिमा तो हिमालय की एवरेस्ट ऊंची चोटी को भी लाइ देती थी । आचार्य पदवी के वक्त पूज्यश्री के आंख में से आंसू बहते थे । ३५० साधुओं के गच्छाधिपति होते हुए भी स्वयं के शिष्य सिर्फ १५ ही थे । मुमुक्षु पूज्य श्री के शिष्य बनने के लिए तडफते थे मगर अपने महवर्ति पूज्यपादाचार्य श्री रामचन्द्रसूरिजी महाराजा, पूज्यपाद आचार्य श्री भुवनभनुसूरीश्वरजी महाराजा आदि के शिष्य बना देते थे। ज्ञान के अगाध सागर होते हुए भी व्याख्यान नहीं देते थे ।
पूज्यश्री अपने कट्टर शत्रु के प्रति भी कृपा दृष्टि रखते थे । जो माधु विशेष पूज्य श्री विरुद्ध पेम्पलेट, लेख आदि लिखते एसे साधु को समाधि देने के लिए पूज्य श्री अपने साधु भेजते थे ।
रोग आने पर पूज्यश्री कहते थे मित्र आया है | सादा जीवन उच्च विचार (Simple life high thinking) की लोकोक्ति पूज्यश्री के जीवन में आबेहूब दृष्टि गोचर होती थी, एसी बहुमुख प्रतिभा के धनी मार्गणाद्वार, संक्रमकरण आदि बेजोड ग्रन्थों के लेखक सिद्धान्त महोदधि कर्मसाहित्यनिष्णात सुविशाल गच्छाधिपति स्वर्गीय पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा विशाल कर्मसाहित्य के निर्माण की योजना सोच रहे थे उस वक्त प्रारम्भिक नींव के रुप में प्रस्तुत टीका चुनी गई । यद्यपि उपशमना करण
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