Book Title: Jivandhar Champu
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 331
________________ जीवन्धरचम्पूकाव्य इतने में ही चलते-फिरते पहाड़के समान भारी राजाका मदोन्मत्त हाथी जांघोंके वेगसे टूटी और वायुके प्रकोप से उड़ाई हुई शाखाओंके समूह से मेघरहित आकाशमें भी मेघका भ्रम बढ़ाता और जनता में हाहाकार उत्पन्न करता हुआ बड़े वेग से नागरिकों के समूह में आ घुसा ||२६|| गण्डस्थलसे निकलते हुए मदजलके द्वारा दोनों ओर दो नदियोंको उत्पन्न करता हुआ वह मदोमत्त हाथी गुणमाला के रथकी ओर दौड़ा ||३०|| २७४ उस समय गुणमालाके जो परिवारके लोग थे वे दन्तप्रहार करने के लिए उद्यत गजराज के भसे बहुत दूर भाग गये । मात्र एक धाय सुख-दुःखकी संगिनी होनेके कारण शेप रह गई ' और मुझे मारकर ही गुणमाला मारी जाय' यह कहकर वह गुणमाला के आगे खड़ी हो गई । समीपवर्ती लोग 'मरी-मरी' कहकर जोर से चिल्लाने लगे । यह देख दयालु हृदय जीवन्धरने पास जाकर सिंहकी तरह अपने सिंहनाद से दिशाओंके तट गुँजा दिये । यद्यपि वह हाथी भयं कर था तो भी जीवन्धरने उसे अनायास ही सूकर बना दिया और उसके कन्धेपर जा बैठे । गुणमाला स्तन हाथी गण्डस्थलके समान ही हैं क्या ? यह देखनेकी इच्छासे ही मानो उन्होंने हाथीके गण्डस्थलपर हाथ, गुणमालाके स्तनकलशपर दृष्टि और मनमें उसके प्राप्त करनेका प्रस्ताव किया था । गजराज के मस्तकपर पड़ी यूथिकाके समान केशोंवाली इस गुणमालाकी चाल मदोन्मत्त हाथीके समान है, ऊरुयुगल कोमल सूँड़के समान हैं और स्तनयुगल गण्डस्थलकी सदृशता धारण करते हैं ||२६|| इस प्रकार मनमें विचार करते ही जीवन्धर स्वामी कामके वाणोंके प्रहारसे परवश हो गये | उसी दशामें वे हाथीको बाँधनेके खम्भेतक लाये और मित्रोंके साथ रथको अलंकृत करते हुए अपने महलके भीतर प्रविष्ट हुए । उस समय हस्तीसम्बन्धी विज्ञानकी प्रशंसा करनेवाले नागरिक इनकी बहुत भारी स्तुति कर रहे थे । उधर साक्षात् कामदेवस्वरूप अनुपम जीवन्धर कुमारका अवलोकन करनेसे जिसका अन्तरङ्ग तन्मय हो रहा था ऐसी गुणमाला कामसे पीड़ित होती हुई अपने घर गई । वहाँ चिरकालतक बेचैन रहकर वह मनसे निरन्तर उन्हींका ध्यान करती थी । संतापके कारण उसका मुख सूख रहा था । यद्यपि सखियाँ उससे बार-बार इसका कारण पूछती थीं तो भी वह कुछ भी उत्तर नहीं देती थी ||३०|| --- जब गुणमाला अत्यन्त अस्वस्थ हो गई तब वह कामदेवकी निन्दा इस प्रकार करने लगीहे कुसुमायुध, हे कामदेव ! तुम्हारे बाण पाँच ही हैं और उनके लक्ष्यभूत जन अनेक हैं जब यह बात निश्चित है तब मैं अकेली ही अनन्त बाणोंके द्वारा पञ्चता-मृत्यु ( पक्ष में पञ्चसंख्या ) को कैसे प्राप्त करा दी गई ||३१|| इस तरह अनेक प्रकारका प्रलाप करती और कामदेवका तीव्रतर संताप सहन नहीं करती हुई वह गुणमाला क्षणभरके लिए कपूर की बावड़ीके समीप रहती, क्षणभर के लिए उपवनके तट पर बने हुए मनोहर लतावृक्ष में समय बिताती, क्षणभरके लिए फूलांके बिछे विस्तरपर लेटती, क्षणभरके लिए कोमल किसलयोंकी शय्यापर पड़ती, क्षणभर के लिए सुकुमार हंसतूलके गद्देपर बैठती और क्षणभरके लिए केलोंके उपवन में समय बिताती थी । अन्तमें उसने क्रम-क्रम से एक पत्र लिखकर किसी क्रीड़ा शुकको जीवन्धर स्वामीके पास भेजा । इधर विश्वपूज्य जीवन्धर कुमार भी अनेक प्रकारकी विरहाग्निसे व्याप्त शरीरको धारण करते हुए अपने घरके बगीचामें बैठे थे और चित्रमें गुणमालाका अत्यन्त सुन्दर शरीर लिखकर सांसे भरते हुए चिरकालसे उसे देख रहे थे ||३२||

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