Book Title: Jivandhar Champu
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 366
________________ दशम लम्भ ३०६ इसके बाद जीवन्धर कुमारने गुणमाला के घर में प्रवेश किया और एकान्तमें उसे देख उसका आलिङ्गन किया ||३|| गुणमालाने बड़े खेद के साथ कहा कि हे आर्यपुत्र ! मेरे निमित्तसे ही आपको इतना दुःख भोगना पड़ा है अतः आप मुझ अभागिनीका स्पर्श न करें । इसके उत्तर में जीवन्धर स्वामीने कहा कि हे तरुणि ! तेरा मुख तरुण सूर्यकी किरणोंसे विकसित कमलके समान है । तूने पूर्व भवमें जो पुण्य किया था उसीके प्रभावसे मैं ऐसा हुआ हूँ अन्यथा मुझे बहुत दुःख भोगना पड़ता । इस तरह गुणमालाको समझाकर वे गन्धर्वदत्ताके घर गये और वहाँ से वापिस अपने घर आये । वहाँ मन्त्रज्ञ मनुष्योंमें श्र ेष्ठ जीवन्धर स्वामीने गन्धोत्कट के साथ सलाह की और मित्र- मण्डलको साथ ले जिसमें मनके समान वेगशाली घोड़े जुत रहे थे ऐसे रथके द्वारा सुन्दरताकी सीमा भाण्डार स्वरूप विदेह देश में प्रवेश किया । विदेह देशमें धरणीतिलक नामसे प्रसिद्ध एक नगरी थी जिसमें जीवन्धर स्वामी के मामा गोविन्द राजा रहते थे, उसीमें उन्होंने प्रवेश किया || ४ || जब गोविन्द महाराजको जीवन्धर स्वामीके आनेका समाचार मालूम हुआ तो उन्होंने आज्ञा देकर पुरुषोंसे नगर की गलियाँ सजवाई । उन गलियों में जो खिले हुए निर्मल फूल बिखेरे, गये थे उनकी सुगन्धिसे भ्रमर इकट्ठे हुए थे और उनकी झङ्कारसे वहाँ बजने वाले विविध बाजोंके शब्द मिश्रित हो रहे थे । जीवन्धर स्वामीके दर्शनकी इच्छासे परवश नागरिक लोगों की जो बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई थी उसे हटानेमें तत्पर राजकर्मचारियों के हाथमें जो सुवर्णकी वेत्रलता चञ्चल हो रही थी उसकी कान्तिसे उन गलियों में ऐसा जान पड़ता था मानो प्रातः कालका लाल-लाल आतप ही फैल रहा हो। इसके सिवाय मकानोंके अग्रभागपर जो पताकाएँ, चंदोवा, छत्र तथा चमर आदि बाँधे गये थे उनसे उन गलियों में सूर्यकी किरणोंका प्रवेश रुक गया था । इन गलियों में मन्थर गति से चलनेवाले रथोंके द्वारा जीवन्धर स्वामी प्रवेश कर रहे थे । देखनेके भारी कौतूहलसे मकानों के अग्रभागपर जो स्त्रियाँ इकट्ठी हुई थीं उनके चञ्चल कटाक्षों से निर्मित नीलकमलकी मालाको वे धारण कर रहे थे । इस तरह चलकर जीवन्धर आदि कुमारोंने क्रमसे राजमहल में प्रवेश किया । वहाँ जिनका रोम-रोम खिल रहा था ऐसे आनन्द के वशीभूत राजा गोविन्दने जीवन्धर कुमारका आलिङ्गन किया, सुख- समाचार पूछा । सबका यथायोग्य सन्मानकर अच्छी तरह अनेक उपचार किये ||५|| तदनन्तर गोविन्द महाराज जीवन्धर स्वामीको सिंहासनपर और काष्ठाङ्गारको यमराज के मुखमें अधिष्ठित करना चाहते थे इसलिए उन्होंने सलाहके लिए अपने मन्त्रिमण्डल तथा जीवन्धर कुमार के साथ मन्त्रशालामें प्रवेश किया । वहाँ यद्यपि वे परिमित जनोंसे ही परिवृत थे - घिरे थे तथापि रत्नमयी दीवालों में प्रतिफलित प्रतिबिम्बोंके कारण ऐसे जान पड़ते थे मानो अनेक पुरुषोंसे परिवृत हों । इस तरह अत्यन्त सुशोभित होनेवाले गोविन्द महाराजने सलाह करना शुरू किया | तदनन्तर राजाके अभिप्रायको समझनेवाले और नीतिरूपी शास्त्रके पारगामी मन्त्री निम्न प्रकार वास्तविक निवेदन करने लगे । उन्होंने कहा कि हे राजन् ! शत्रु काष्ठाङ्गारकी मनोवृत्ति मायासे भरी हुई है इसीलिए उसने इस समय हम सबको ठगनेके लिए एक विनयपूर्ण पत्रिका भेजी है || ६ ॥ उसमें लिखा है कि किसी एक दिन एक मदोन्मत्त हाथी खूँटा उखाड़कर, बेड़ियाँ तोड़कर समस्त सेनामें क्षोभ फैलाता हुआ सत्यन्धर महाराजके महलके आस-पास घूम रहा था । वह इतना हाथ था कि सेनाके समस्त योद्धा उसे पकड़ने में असमर्थ थे । पता चलते ही सत्यन्धर

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