Book Title: Jivandhar Champu
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 339
________________ जीवन्धरचम्पूकाव्य उसी समय जिसके मनरूपी कमलसे आनन्दरूपी मकरन्द प्रकट हो रहा था ऐसे राजाने पास बुलाकर उनकी बहुत ही स्तुति की तथा मणिमय सिंहासनपर बैठाकर उनका विनय सहित सन्मान किया । रूप तथा लक्षण आदि देखकर राजाने तत्काल ही निश्चय कर लिया कि यह राजवंश में उत्पन्न हुआ है । २८२ राजाने ज्योतिषी आदि मुख्य-मुख्य लोगोंको सभामें बुलाकर निश्चय किया और विवाह सम्बन्धी तैयारियाँ करनेके लिए शुभ मुहूर्तका आदेश दिया ||३६|| तदनन्तर नगरकी गलियाँ मणिमय तोरणों, पताकाओं, कलशों और दर्पणों आदि के द्वारा सजाई गईं, अनेक प्रकारके रत्नोंके खम्भों से सुशोभित विवाहका मण्डप बनाया गया और उसमें अद्भुत रूपसे सुसज्जित माङ्गलिक द्रव्योंसे संगत मणिमयी वेदिका बनाई गई । तदुपरान्त राजा इसी वेदीपर विवाह सम्बन्धी मङ्गल कार्य करनेके लिए तत्पर हुए। नहलाई हुई राजपुत्रीको उसकी सखियोंने बड़े हर्ष से प्रसाधन गृहके आँगन में आभूषण पहिनाना शुरू किया ||४०|| क्षीर सागर के तटपर स्थित चञ्चल फेनके टुकड़ोंके समान कोमल वस्त्र सेवेष्टित राजपुत्री ऐसी जान पड़ती थी मानो शरदऋतुकी निर्मल मेघमालासे सुशोभित चन्द्रमा की रेखा ही हो अथवा फूलोंसे आच्छादित नूतन कल्पलता ही हो ॥४१॥ उसके चरण-कमलोंमें जो हीरों के नूपुर चमक रहे थे वे ऐसे जान पड़ते थे मानो नखरूपी चन्द्रमाकी सेवा के लिए ताराओं की पङ्क्ति ही उसके चरणोंके समीप आई हो । अथवा ऐसे जान पड़ते थे मानो यौवनरूपी ताके फूल ही झड़कर नीचे आ पड़े हों ॥ ४२ ॥ उसके स्थूल नितम्ब - मण्डलपर सुशोभित करधनी ऐसी जान पड़ती थी मानो कामदेवकी राजधानीका सुवर्णमय कोट ही हो, अथवा कामके खजानेको घेरकर बैठी सर्पिणी ही हो, अथवा कामदेव उद्यानकी बाड़ी स्वरूप कल्पलता ही हो । क्या यह हार है अथवा सब मनुष्यों के नेत्रोंका आहार ही है ? अथवा इस कमललोचनाके स्तनरूपी पर्वतसे पड़ता हुआ भरनेका प्रवाह है ? अथवा उसके स्तनरूपी मुकुलोंका कोमल मृणाल है ? इस प्रकार संशय के वशीभूत हो स्त्रीजनोंके द्वारा देखा गया उसका हार बहुत ही अधिक सुशोभित हो रहा था ||४३|| उसकी नाककी मणि ऐसी जान पड़ती थी मानो मुखरूपी कमलके मध्यमें सुशोभित पानीकी बूँद ही हो अथवा नासारूपी वंशसे गिरा हुआ श्रेष्ठ नूतन मोती ही हो ||४४ || उसके स्तनोंपर जो मकरीका चिह्न बना था वह निम्न प्रकार संशय उत्पन्न करता था । क्या यह कामदेव सम्बन्धी मन्त्रके बीजाक्षरोंकी पंक्ति है, क्या उसकी विरुदावली है। अथवा क्या स्तनरूपी कमलोंपर बैठनेवाली भ्रमरोंकी पंक्ति ही है || ४५|| इस प्रकार सजाये जाने पर जो कामदेव के मोहन मन्त्रकी अधिष्ठात्री देवीके समान जान पड़ती थी, अथवा साक्षात् आई हुई कामदेवकी क्रीड़ाके समान प्रतिभासित हो रही थी ऐसी युवती तथा स्त्रीजनोंमें शिरोमणि भूत पद्माको उसकी सखियाँ, वेदीके मध्य में सुशोभित मणिमय चौकी पर बैठे हुए कामदेव पदवीके धारक जीवन्धर कुमारके पास धीरे-धीरे लाई । तदनन्तर जब समस्त बाजोंके शब्द दिशाओंके अन्तरालको व्याप्त कर रहे थे, मन्त्रवेत्ताओं के वचन उत्तरोत्तर वृद्धिको प्राप्त हो रहे थे, वेदीके चारों ओर मणिमय माङ्गलिक दीप जल रहे थे, पूज्यमान अग्नियाँ प्रज्वलित हो रही थीं, सौभाग्यवती स्त्रियाँ विवाह- मङ्गल देखनेके कुतूहलसे अपने नेत्रोंको फैला रही थीं, सभाके कर्मचारी लोग धक्का - धूमी कर रहे थे, और राजा लोग भुजाओं सम्बन्धी बाजूबन्दोंके पारस्परिक संघर्षके कारण टूटकर गिरते हुए सुवर्णके टुकड़ों के बहाने मानो भुजाओं के प्रतापके कण बिखेर रहे थे। तब शुभमुहूर्त आनेपर जीवन्धर स्वामीने जलधारा पूर्वक धनपति राजा द्वारा प्रदत्त तिलोत्तमाकी पुत्री पद्माका पाणिग्रहण किया ।

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