Book Title: Jinabhashita 2006 10 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ सम्पादकीय मोदी सरकार द्वारा सत्ताबल से धर्मान्तरण का प्रयास गुजरात की भाजपा - मोदीसरकार ने विधानसभा में सभी प्रतिपक्षी दलों के द्वारा तीव्र विरोध किये जाने पर भी दलीय बहुमत के बल पर 'गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन अधिनियम 2006' पारित कराया है, जिसमें यह मान लिया गया है कि जैसे शिया और सुन्नी सम्प्रदाय इस्लाम के अंग हैं और कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म के, वैसे ही जैन और बौद्ध धर्म हिन्दूधर्म के अंग हैं। इस बिल का प्रयोजन धर्मान्तरण को रोकना बताया गया है, किन्तु इसके द्वारा स्वयं मोदीसरकार सत्ताबल से जैनों और बौद्धों का उनकी इच्छा के विरुद्ध धर्मान्तरण कर उन्हें कानून के द्वारा हिन्दू बनाने की कोशिश कर रही है। मैं भारतीय जनता पार्टी को एक राष्ट्रवादी पार्टी मानकर आज तक वोट देता आ रहा हूँ और जो दल उसे फासिस्ट पार्टी कहकर उसकी निन्दा करते थे, मैं उनकी निन्दा करता रहा हूँ, किन्तु अब मुझे उनका कथन सही सिद्ध होता दिखाई दे रहा है। एक लादेन सारी दुनिया को मुसलमान बनाना चाहता है, और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सारे जैनों और बौद्धों को हिन्दू बनाने की कोशिश कर रहे हैं । जैन और बौद्ध भारतवासी होने से भारतीय हैं और हिन्दुस्तानवासी होने से हिन्दू हैं, लेकिन धर्म की दृष्टि से हिन्दू नहीं हैं। जैनधर्म और बौद्धधर्म शैवसम्प्रदाय और वैष्णव सम्प्रदाय के समान हिन्दूधर्म के सम्प्रदाय नहीं हैं, अपितु स्वतंत्र धर्म हैं। इसका निर्णय अनेक प्रमाणों से होता है। पहला प्रमाण तो यह है कि जैसे शैवसम्प्रदाय में हिन्दूधर्म के भगवान् शिव को आराध्य माना जाता है और वैष्णव सम्प्रदाय में हिन्दूधर्म के भगवान् विष्णु को उपास्य माना जाता है, वैसे जैन और बौद्ध धर्मों में हिन्दूधर्म के किसी भगवान् या देवी - देवता को आराध्य या उपास्य नहीं माना जाता। जैनधर्म में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर तक चौबीस तीर्थंकरों की उपासना की जाती है। इनमें से कोई भी तीर्थंकर हिन्दूधर्म में आराध्य नहीं माना गया है, किसी भी हिन्दूमन्दिर में किसी भी तीर्थंकर की प्रतिमा प्रतिष्ठित नहीं की जाती, तब आराधना, पूजा-अर्चना का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि जैनधर्म हिन्दूधर्म का सम्प्रदाय या शाखा नहीं है । जब जैनधर्म में हिन्दू देवी-देवताओं की आराधना नहीं की जाती और जैनों के आराध्य तीर्थंकरों को हिन्दूधर्म में अपना आराध्य देवता स्वीकार नहीं किया गया है, तब यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि जैनधर्म हिन्दूधर्म का सम्प्रदाय, शाखा या अंश है? जैनधर्म में हिन्दूधर्म की कोई आनुवंशिकता ही नहीं है, कोई रक्तसम्बन्ध ही नहीं है, तब उसे हिन्दूधर्म का अंग कैसे कहा जा सकता है? यह तो आम के वृक्ष को अमरूद की शाखा कहने-जैसा अत्यन्त अतर्कसंगत, झूठा कार्य है। वृक्ष दूसरा प्रमाण यह है कि जैनधर्म में हिन्दूधर्म के वेद-पुराण आदि धर्मग्रन्थों को अपना धर्मग्रन्थ नहीं माना गया है। और जैनधर्म जिन षट्खण्डागम, कसायपाहुड आदि धर्मग्रन्थों को अपना धर्मग्रन्थ मानता है, उन्हें हिन्दूधर्म में अपना धर्मग्रन्थ स्वीकार नहीं किया गया है। हिन्दूशास्त्र ईश्वरकर्तृत्व, अवतारवाद, एकात्मवाद (एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म) और जगन्मिथ्यावाद (ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या) का प्रतिपादन करते हैं, जबकि जैनशास्त्र इनके निषेधक हैं। इस तरह दोनों धर्मों में सिद्धान्तों, विश्वासों और मान्यताओं का भी अन्तः सम्बन्ध नहीं है । यह इस बात का दूसरा अकाट्य प्रमाण है जैनधर्म हिन्दूधर्म की शाखा नहीं है 1 किन्हीं भी भिन्न सम्प्रदायों के एकधर्म से सम्बन्धित होने के प्रमाण ये दो ही मुख्य तत्त्व होते हैं: 1. ईश्वर, भगवान् या देवी-देवताओं का एक (समान) होना और 2. धर्मग्रन्थों तथा सिद्धान्तों, विश्वासों और मान्यताओं का समान होना । शिया और सुन्नी एक ही अल्लाह (खुदा) तथा एक ही पैगम्बर मोहम्मद साहब के अनुयायी हैं तथा उनका धर्मग्रन्थ भी एक ही है- कुरआन । इसलिए ये दोनों सम्प्रदाय इस्लाम के हिस्से हैं। कैथोलिक और प्रोटेस्टैण्ट भी एक ही ईसामसीह के आराधक हैं और उनका धर्मग्रन्थ भी एक ही है- बाईबिल । अतः ये दोनों सम्प्रदाय भी ईसाई धर्म के भाग हैं । किन्तु जैन, बौद्ध और हिन्दू न तो एक ही भगवान् या देवी-देवता के आराधक हैं, न ही उनके धर्मग्रन्थ एवं सिद्धान्त, विश्वास और मान्यताएँ एक (समान) हैं। इसलिए जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्मों में से कोई भी किसी का अंग या हिस्सा सिद्ध नहीं होता । Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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