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जैनधर्म और हिन्दूधर्म हमसफर हैं, एक नहीं
कैलाश मड़बैया म. प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह जी अपने लेखों । जैन संत/मुनि, अन्य धर्मों से हटकर पूर्ण अपरिग्रही और के माध्यम से प्रायः अपने विरोधियों को एक अच्छी बात | वीतरागी होता है। धन सम्पदा तो दूर, तन पर धागा तक नहीं समझाते हैं कि बिना अध्ययन के अभिव्यक्ति करना अनुचित | धारण करता। व्रत कर दूंखा-प्यासा रह सकता है, पर है। काश यह तथ्य वे अपने ही दल के वरिष्ठ नेता और अभक्ष्यसेवन नहीं कर सकता। राजनीति तो दूर की बात है, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को समझा पाते, तो कम | संसार की किसी नीति में लिप्त नहीं रहता। त्याग, करुणा, से कम अल्पसंख्यकों के बारे में सारे विश्व में उनकी ऐसी | साधना तो सभी धर्मों में कमोवेश एक जैसी ही हैं। पर किरकिरी तो नहीं हो पाती। विशेषतौर से उनका ताजा धर्म | जैनधर्म का आदिकाल से पृथक अस्तित्व, पृथक इतिहास, परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक तो यही पुष्ट करता है कि श्री | पृथक वैज्ञानिक उपासना पद्धति, पृथक भूगोल, पृथक मोदी को हिन्दूधर्म और जैनधर्म के मूल अभ्युदय की ही | समाजशास्त्र रहा है। हिन्दूधर्म वैदिक धर्म है, जबकि जैनधर्म जानकारी नहीं है। हालाँकि जैनियों के प्रति अपनी नियत | प्राग्वैदिक स्वतंत्र धर्म है। एक प्रवृत्तिमार्गी है तो दूसरा
और इरादे तो उन्होंने गिरनार प्रकरण में बहुत पहले ही स्पष्ट | निवृत्तिमार्गी। वेदों में प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख कर दिये थे, जब अनाधिकृत कब्जा करनेवाले कतिपय | केशी नाम से अनेक जगह हुआ है। इसीलिये डॉ. सर्वपल्ली पण्डों को मोदी प्रशासन ने प्रश्रय देकर, ऐतिहासिक जैन | राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक ने इसे एक स्वतंत्र धर्म और इस तीर्थंकर नेमिनाथ की निर्वाण भूमि पर अराजक तत्त्वों को | युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ को ही इसका प्रथम उपदेष्टा । अप्रत्यक्ष शह दी थी। यह अलग बात है कि अहिंसक | माना है। जैन धर्म का प्राचीन साहित्य, हिन्दूधर्म से भिन्न जैनियों का निष्क्रिय केन्द्रीय नेतृत्व पत्राचार ही करता रहा | प्राकृत में पाया जाता है। संस्कृत में तो बाद में प्रथम ग्रंथ और वे तत्त्व कोर्ट के स्टे तक की धज्जियाँ उड़ाते रहे। तत्त्वार्थ सूत्र आचार्य उमा स्वामी ने लिखा है। पं. जवाहर परिणाम यह कि सदियों से गिरनार वंदना करनेवाले जैनियों | लाल नेहरू को यद्यपि राजनेता के रूप में जाना जाता है, पर को वहाँ दर्शन तक करने पर मारा-पीटा जाने लगा। एक लेखक के रूप में 'डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' उनकी
अब यह उसी सहनशीलता पर दूसरा प्रहार है। सर्वमान्य साहित्यिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कृति है, सामान्यतः जैनधर्म और हिन्दूधर्म में ऊपर से कोई अंतर नहीं | जिसमें उन्होंने भी जैन धर्म को एक स्वतंत्र धर्म और जैनियों दिखता, क्योंकि दोनों में अहिंसा और मानवीयता एक जैसी | को भारत का मूल निवासी माना है। संविधान ने, सुप्रीमकोर्ट ही है, पर सामान्य अध्येता भी यह समझता है कि वे साथ- | ने, और मण्डल कमीशन ने भी जैनधर्म को अहिन्दु धर्म ही साथ चलनेवाले हमराही भले कह दिये जायें, पर एक नहीं | माना है। जब अनेक राज्यों ने जैनियों को अल्पसंख्यक होने हैं। मूलभूत अंतर तो यही है कि हिन्दू धर्म में ईश्वर ही | की मान्यता दी थी, तब भी यह विवाद छिड़ा था और सृष्टि का कर्ता है। हिन्दू मानते हैं कि जब-जब धर्म की केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने सभी पक्षों को सुनकर जैनधर्म हानि होती है, भगवान धरती पर अवतार लेते हैं। दूसरी ओर | को स्वतंत्र धर्म माना था। तब नरेन्द्रमोदी बिना अध्ययनजैन धर्म में अवतार को कोई मान्यता नहीं है। प्रत्येक जीव, | मनन के यह विधेयक कैसे लागू कर सकते हैं कि जैनधर्म साधना और तपस्या से मुक्ति पाकर परम आत्मा हो सकता | और हिन्दू धर्म एक ही हैं ? मात्र इसलिये कि सत्ता का है, लेकिन फिर जन्म-मृत्यु से परे हो जाता है। तीर्थंकर | बहुमत उनके साथ है और अल्पसंख्यक जैन अहिंसक और अपने कर्मों से बनते हैं, अवतार से नहीं। जैन धर्म में सृष्टि | सहिष्णु हैं ? पर सत्ता के मद में कभी सत्य को झुठलाया का कर्ता ईश्वर को नहीं माना जाता। ईश्वर न तो कुछ | नहीं जा सकता। कुछ देर के लिये आँखों में धूल झोंकी जा बनाता है न किसी का कुछ बिगाड़ सकता है। सच्चा जैन, | सकती है। इतिहास में ऐसे कई सत्तासीन दब चुके हैं, मंदिर में मूर्ति पूजा इसलिये नहीं करता कि भगवान उसे | जिन्होंने अपनी मनमानी भले कुछ समय को कर ली हो, पर कुछ दे दें। बल्कि इसलिये करता है कि वह भी उनकी | सत्य को सदा के लिये झुठला नहीं पाये। शायद जैनियों को तरह जितेन्द्रिय बनकर मुक्तिपथ पर अग्रसर हो। एक सच्चा | ही अपनी अस्मिता का बोध हो जाये और उनके निष्क्रिय
8 अक्टूबर 2006 जिनभाषित
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