Book Title: Jinabhashita 2006 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ ग्रन्थ समीक्षा एक महान प्रयोजन की सिद्धि : स्वतंत्रता संग्राम में जैन देवेन्द्र कुमार जैन सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ग्रन्थ का नाम : स्वतंत्रता संग्राम में जैन लिखी गईं, तो स्वाध्यायी जैन समाज में उनके सेनानियों पर (प्रथम खण्ड) संस्करण : द्वितीय वर्ष 2006 साहित्य न हो, यह संभव नहीं। इसलिए डॉ. कपूरचंद तथा लेखक : डॉ. कपूरचंद जैन एवं डॉ. श्रीमती ज्योति जैन । डॉ. ज्योति जी साधुवाद के अधिकारी हैं और प्रकाशक प्रकाशक : सर्वोदय फाउण्डेशन, खतौली (उ. प्र.) सर्वोदय फाउण्डेशन प्रशंसा के पात्र हैं। प्रथम खण्ड तो मूल्य : रु.300 आगाज है एक महान प्रयोजन की सिद्धि का। यह मंजिल जब जज्बा देशप्रेम का हो और उददेश्य देश को | नहीं, पड़ाव है, ताकि उन स्वातंत्र्य शहीदों और दिवंगतों का आजादी दिलाना तो आजादी के दीवानों में ऊँच-नीच, छोटे- | स्मरण अगले खण्ड में किया जा सके, जो किसी कारणवश बड़े, गरीब-अमीर, मालिक-मजदूर जैसे भेदभाव नहीं होते।। अनदेखे, अनचीन्हे रह गये। मुझे विश्वास है कि प्रथम तभी एक शक्तिपुंज बनता है, जिसकी किरणें यत्र तत्र सर्वत्र खण्ड के वाचन से बहुतों को यह लगेगा कि उनके निकट बिखर जाती हैं, दीप से दीप जलते हैं और विप्लव कहें या संबंधी या उनके क्षेत्र के अमुक स्वतंत्रतासंग्रामी का उल्लेख विद्रोह, शांतिपूर्ण असहयोग कहें या सविनय अवज्ञा-आंदोलन, न होने से ग्रंथ अधूरा है। तब स्वाभाविक रूप से उनके द्वारा ऐसे समाजशिरोमणियों के नाम विवरण और स्वतंत्रता संग्राम संज्ञा कुछ भी दें, पर असर वही होता है कि विदेशी शासक के पैरों तले की जमीन खिसकने ही लगती है। में उनके योगदान का ब्यौरा लेखक / प्रकाशक को उपलब्ध . कराया जायेगा। जैन अपने अहिंसक आचरण और शांत जीवनशैली के लिये जाने जाते हैं, परन्तु यह कायरों की कौम नहीं, वीरों मुझे अपने गुरुदेव स्व. प्रो. भगवानदास माहौर की ये की विरासत है। जब-जब धर्म पर विधर्मियों ने घेरा डाला. पंक्तियाँ बरबस स्मरण हो आती हैं - जैन वीरों ने धर्म रक्षार्थ बुद्धि और विवेक के साथ शांत संघर्ष मेरे शोणित की लाली से, कुछ तो लाल धरा होगी, किया और अवसर आने पर प्राणों की आहुति देने में नहीं मेरे वर्तन से परिवर्तित, कुछ तो परंपरा होगी। हिचकिचाये। इसी तरह राष्ट्र पर, देश पर आये संकट का क्रांतिकारी स्व. माहौर झांसी में चंद्रशेखर आजाद सामना भी बड़ी निर्भीकता, सूझबूझ, साहस और संगठन (छद्मनाम शिवदत्त ब्रह्मचारी) के सहचर रहे और उग्रवाद सूत्र बना कर किया। के मार्ग से देश को स्वतंत्रता दिलाने में सफलता पाई। यह 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' नामक ग्रंथ उन्हीं स्वातंत्र्य | देश केवल अहिंसक आंदोलनों से स्वाधीन नहीं हआ। राजनीति वीरों का पण्य स्मरण है। नई पीढी को अपने पर्वजों पर गर्व में साम-दाम, दण्ड और भेद भी नीति होती है. अंग्रेजी हो और दिवंगतों को स्वर्ग में यह संतोष कि उन्होंने उत्तराधिकार | साम्राज्य, जिसमें सूर्य कभी अस्त नहीं होता था उस की चूलें में देशप्रेम, जनसेवा और सत्यनिष्ठा योग्य हाथों में सौंपी है, | सत्याग्रह से हिली तो क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी शासकों की इस उद्देश्य से लिखा गया यह संग्रह संग्रहणीय है। नींद उड़ाई। अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दरअसल होता यह है कि राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आजाद हिन्द सेना संगठित कर ब्रिटिश शासन को युद्धक्षेत्र ख्यातिप्राप्त महापुरुषों को जब समय भुलाने लगता है, तो में भी ललकारा था। इसलिए कवि दुष्यंत के शब्दों में - जातीय समाज उन्हें गर्व से स्मरण करते हैं। यह समाजों का 'जो जहाँ पर है वतन के काम पर है' को चरितार्थ किया। अधिकार है और कर्तव्य भी। इसलिये जब इतर पत्रकारिता ने कलम से आजादी की लड़ाई लड़ी। कवि, लेखक साहित्यकार नाट्यकर्मियों ने अपने-अपने मोर्चे सम्हाले जातियों/समाजों के स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों पर पुस्तकें 20 अक्टूबर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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