Book Title: Jinabhashita 2006 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ श्वेताम्बरों का एक सामूहिक रूप से संवत्सरी प्रतिक्रमण | पर एवं कम्पनियों में काम करने वाले जैन युवा साथियों की होता है। यह कार्यक्रम वहाँ पहले भी होता था, इस वर्ष भी संख्या लगभग चार हजार है, जो प्रायः राजस्थान के उदयपुर, बड़े उत्साह के साथ किया गया। इसमें वे प्रतिक्रमण की | बाँसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के हैं। उदयपुर जिले के 200 टेपरिकार्ड चालू कर देते हैं, फिर निर्देशानुसार व्यवस्थित ले पारसोला ग्राम के तो प्रत्येक घर से सभी प्रतिक्रमण करते हैं। तीन या चार व्यक्ति कुवैत में ही काम करते हैं। 7. श्रमण संस्कृति पाठशाला की स्थापना -- बड़े हर्ष वहाँ रहने वाले प्रत्येक जैनीभाई भारत आकर मन्दिर की बात है कि 10 दिन पाठशाला से प्रभावित होकर दो युवा | जायें या न जायें, निश्चित नहीं, पर वहाँ कमरे पर तो सुबह साथियों ने इस पावन परम्परा को प्रति शुक्रवार (अवकाश | भगवान के सामने दीपक-अगरबत्ती जलाकर दर्शन कर का दिन) जारी रखने का संकल्प लिया है। श्री सोहनलाल | यथासम्भव स्तोत्र, माला करके ही काम पर जाते हैं व रात्रि में जी कलावत (पारसोल वाले) एवं श्री वैभव शाह (पूना) ने | भी एक आरती तो प्रायः करते ही हैं। इन लोगों का रहना प्रारम्भिक कुछ धार्मिक ज्ञान होने के कारण इस जिम्मेदारी समूह में ही होता है। ये 10-15-20 लोग एक साथ दो तीन के वहन का संकल्प किया है। कमरों में ही रहते हैं। एक खाना बनाने वाला व्यक्ति रख 8. कुवैत का भौगोलिक वातावरण - यह एक 30 | लेते हैं, जो शुद्ध भोजन बना लेता है और कमरों की सफाई लाख की जनसंख्या वाला छोटा सा देश है। जिसमें लगभग | कर लेता है। ये लोग सुबह 7 या 8:00 बजे काम पर निकल 5 लाख के आसपास तो भारतीय ही हैं, जो वहाँ अर्थोपार्जन | जाते हैं। दोपहर 2 बजे आते हैं, भोजन कर थोड़ा विश्राम की दृष्टि से गये हुये हैं। यह पूरा प्रदेश रेगिस्तान प्रदेश है, | करके पुनः 4 बजे काम पर चले जाते हैं तथा रात्रि में 9 या यहाँ मुख्यरूप से दो ऋतुओं का प्रभाव अधिक है, ग्रीष्म | 10 बजे वापस आकर भोजन करके थोड़ा भ्रमण करके ऋतु व शीत ऋतु। बरसात में वहाँ पर एक-दो महीने के शयन करते हैं। 1 या 2 वर्ष में भारत आ जाते हैं। वहाँ लोगों लिए कभी-कभी बारिश हो जाती है। ए. सी. के बिना वहाँ को मेहनत के अनुकूल पारिश्रमिक भी अच्छा मिल जाता लोग रह नहीं सकते। वहाँ लोगों की कारें, आफिस एवं घर | है। अतः वे घर से दूर रहकर भी वहाँ अर्थोपार्जन करना सभी वातानुकलित ही होते हैं। मक्खी या मच्छर तो हँढने | ठीक समझते हैं। पर भी नहीं मिलते। वहाँ बीमारियाँ भी नहीं होतीं। पूरे देश 11. कुवैत में अन्य देश वालों को नागरिकता नहीं - में सुन्दर-सुन्दर इमारतें हैं। बड़ी साफ व सुन्दर सड़कें एवं | कुवैत में व्यक्ति कितने ही वर्षों से वहाँ रह रहा हो, परन्तु पार्क हैं। कहीं भी नाम के लिये भी गंदगी नहीं है। अत्यन्त | | उसको वहाँ की नागरिकता नहीं मिलती है, जिसके कारण साफ सुथरा देश है। वह वहाँ जमीन दुकान घर आदि नहीं खरीद सकता है। वहाँ 9. देश का आर्थिक स्रोत - कुवैत में न तो किसी | फ्लैट, दूकान आदि केवल किराये पर उपलब्ध हैं। अनाज की खेती होती है न ही कपड़े आदि बनाने की पिछले वर्षों में कुवैत में कभी भी कोई जैन विद्वान् फैक्ट्रियाँ हैं। वहाँ सिर्फ पेट्रोल एवं डीजल के कुएँ हैं, | प्रवचन हेतु नहीं गया था। इस वर्ष वहाँ एक नवीन उत्साह जिनकी खफत पूरी दुनिया में होती है। वहाँ किसी प्रकार का | एवं जोश के साथ पर्युषण पर्व मनाया गया। एक नई चेतना आयकर या बिक्रीकर सरकार नहीं लगाती है तथा पानी | जागृत हुई। सभी भाइयों ने निर्णय किया है कि अगले वर्ष बिजली एवं शिक्षा की व्यवस्था भी सामान्य चार्ज पर उपलब्ध भी इसी प्रकार भारत से जैन विद्वान् बुलाकर और अधिक कराती है। अच्छे कार्यक्रमों के द्वारा पर्व मनाया जायेगा। 10. जैनों की संस्था - अरिहन्त सोशियल ग्रुप 60 संस्कृत व्याख्याता परिवारों का एक छोटा सा ग्रुप है, जिसमें डाक्टर्स, इन्जीनियर्स, श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स आदि हैं । इसके अतिरिक्त वहाँ दूकानों वीरोदय नगर, सांगानेर, जयपुर (राज.) दुष्ट पुरुष शिष्ट पर, विजयी मनुष्य विषय-विरक्त पर, चोर जागनेवाले पर, दुराचारी धर्मात्मा पर और कायर वीर पर स्वभाव से ही क्रोध किया करते हैं। वीरदेशना -अक्टूबर 2006 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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