Book Title: Jinabhashita 2006 03 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 3
________________ होना चाहिये था। सुबह का भूला शाम को वापस आ जावे, | बाबा के प्रति आस्था कमजोर है, तो उसे बलवान बनाने का वह भूला नहीं माना जाता। अब यहाँ से सर्चलाइट की | प्रयास करो। अपनी आस्था को सजीव बनाओ। देश-विदेश किरणें दूर-दूर तक जायेंगी। कुण्डलपुर बड़े बाबा का स्थान | में यह ऐसा आदर्श कार्य हुआ, जो अध्यात्म की ओर मोड़ने है। जिस मूर्ति के सामने आज तक लाखों करोड़ों जनता ने | की अवश्य ही एक प्रेरणा देगा। जड़ की ओर प्रेरणा देने नतमस्तक होकर दिव्य दृष्टि प्राप्त की, जो काम हुआ आस्था | | वाली बातें बहुत होती हैं, चेतन की ओर मोड़ना प्रेरणा देना के कारण उद्घाटित होकर सामने आया। अत्यावश्यक है। दक्षिण में फरवरी में श्रवणवेलगोला में जिस देश में ऐसे पवित्र स्थल होते हैं, उन स्थानों को | महामस्तकाभिषेक होने जा रहा है। यहाँ से जनता वहाँ जायेगी, सुरक्षित रख कर जैन समाज ने पुरातत्त्व को सुरक्षित ही | जो बड़े बाबा का संदेश लेकर जायेगी। बाहुबली भगवान किया है। पुरातत्त्व विभाग को एक प्रकार से प्रेरणा दी है। | वृषभनाथ के सुपुत्र माने जाते हैं,पहले यहाँ अभिषेक करेंगे। हमारे भगवान बड़े बाबा अधूरे नहीं है, पूरा तत्त्व हैं। हमें पूरा यहाँ का गंधोदक वहाँ ले जाकर लोगों पर छिड़कें। सभी को तत्त्व चाहिये। अधूरे तत्त्व के माध्यम से सम्यग्दर्शन की | बतायें कि अभी तक अंधकार में, अन्डरग्राउन्ड में प्रतिमा प्राप्ति नहीं होती। 4 वर्ष पूर्व महोत्सव हुआ था, जो मुख्यमंत्री | रखी थी, इन्तजार में थी कब उच्च सिंहासन पर आये। बडे आये थे तो उन्होंने लाखों के बीच कहा था, यह कार्य बहुत | बाबा के पास जैन-जैनेतर सभी आते हैं। जो लाइट में नहीं जल्दी होना चाहिये। 4 वर्षों बाद आज उसी आवाज को आये, उन्हें भी देखने की कोशिश करें, सभी के योगदान से पकड़कर लगातार पुरुषार्थ के फलस्वरूप नया इतिहास रच | यह कार्य हुआ, आगे भी होता रहे। गया। आस्था के सामने हम क्या कर सकते हैं, वह पूरा तत्त्व अहिंसा परमोधर्म की जय है, अपने आस्था को उद्घाटित करने की बात करें। बड़े 'जिनभाषित' (हिन्दी मासिक) के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा प्रकाशन स्थान : 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) प्रकाशन अवधि मासिक मुद्रक-प्रकाशक रतनलाल बैनाड़ा राष्ट्रीयता भारतीय पता 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) सम्पादक प्रो. रतनचन्द्र जैन पता ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा, भोपाल-462039 (म.प्र.) स्वामित्व : सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है। रतनलाल बैनाड़ा, प्रकाशक) आचार्य श्री विद्यासागर जी के सुभाषित प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना-अपना पुण्य-पाप है, अपने द्वारा किये हुए कर्म हैं । कमों के अनुरूप ही सारा का सारा संसार चल रहा है, किसी अन्य के बलबूते पर नहीं। फोटो उतारते समय हमारे जैसे हाव-भाव होते हैं, वैसा ही चित्र आता है, इसी तरह हमारे परिणामों के अनुसार ही कर्मास्रव होता है। 'सागर बूंद समाय' से साभार मार्च 2006 जिनभाषित / 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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