Book Title: Jinabhashita 2006 03 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 2
________________ बड़े बाबा से हाथ नहीं मिलाओ, हाथ जोड़ो, हस्तक्षेप नहीं, नतमस्तक हो जाओ कुण्डलपुर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा प्रदत्त प्रवचन एक स्थान पर मंदिर में चित्र देखा था। उसमें समेरु ऐसे शब्दों की चैन पर्वत के ऊपर पांडुकशिला पर कलश-अभिषेक हो रहा है, जिसे समस्त था। सौधर्म इन्द्र होनहार श्री जी पर कलश अभिषेक कर आचार्यों ने रहे थे, सभी की दृष्टि सौधर्म इन्द्र पर चली जाती है। महत्त्वपूर्ण कह भाग्यशाली तो वे होते हैं, जिनके हाथ में कलशा है, एक ध्यान आकृष्ट सामने भरा कलशा लेकर खड़ा है, उसके समीप एक किया है। और खड़ा है, ऐसी कलश माला का अन्त क्षीरसागर के जब श्रीराम, अंत पर है। सौधर्म इन्द्र में जो प्रसन्नता है, तट पर खड़े सीता को खो देते हैं देव के मन में भी वही उत्साह, प्रसन्नता है। यहाँ भी तब सीता की खोज हनुमान करते हैं, सीताजी कहती हैं प्रसन्नता है। हमेशा लाइट में नहीं रहने वाले ही लाइट पहले विश्वास दिलवाओ। हनुमान मुद्रा दिखाते हैं, तब प्रदान करते हैं। आप सोच लें उनका कितना योगदान है। सीताजी विश्वास करती हैं। भेंट में हनुमान को हार मिल उन सभी को सर्वप्रथम हमारा आशीर्वाद है। न जाने जाता है। एक-एक मणि को फोड़कर देखते हैं। राम की किन-किन व्यक्तियों का भाव इस महोत्सव के प्रति रहा, तस्वीरवाली मणि रख लेते हैं। सीता जी पछती हैं- ये क्या? जिसका मापतौल नहीं हो सकता। माप तो स्थान के तब कहते हैं- जो हमारे काम के हैं, उन्हें ही पहनँगा। ये माध्यम से, गुणस्थान के माध्यम से होता है। स्थान काम हो गया, परीक्षा हनुमान की हो गई। पूरी सभा को हृदय जड़त्व की ओर, तो गुणस्थान भावप्रणाली की ओर ध्यान खोलकर दिखाया, उसमें राम लक्ष्मण सीताजी बैठे थे, चरणों आकृष्ट कर देते हैं। भक्ति में कोई भी कम बढ़ नहीं है, में हनुमान भी बैठे थे। सब लोगों की आँखों में पानी आया बोलने से ही भक्ति की अभिव्यक्ति होती, ऐसा नहीं, राम के प्रति समर्पण देखकर। यहाँ बडे बाबा को समर्पित बिना बोले भीतर के भाव अभिव्यक्त हो जाते हैं। बड़े पूरी भारतवर्ष की जनता है, जो यहाँ आ गयी, जो नहीं आया बाबा के इस कार्य के प्रति कौन से व्यक्ति के हृदय में वहीं से उसकी भावना समर्पित हई। कौन-कौन से व्यक्ति ने आनंद की तरंगे (जिसे ज्वारभाटा कह दें) नहीं उठ रही इस मांगलिक कार्य में सहयोग किया, हम भावाव्यक्ति के हैं? हम अनुमान नहीं लगा सकते, महसूस कर सकते हैं। माध्यम से पता लगाते हैं। "ज्ञान चिल्लाता है। आपत्ति जब जीव का आकार प्रकार नहीं हआ करता। आत्मा के । आती है, आस्था झेलती है।" ज्ञान के माध्यम से हम सुन पास ज्ञान गुण भी है, चारित्र गुण भी है एवं एक दूसरा भर, जानभर लेते हैं। आत्मा में झेलने की क्षमता आ जाती दर्शन भी है, जिसे सम्यग्दर्शन बोलते हैं, जिसकी है। एक मात्र आस्था का योगदान होता है। किस मोक्षमार्ग में क्या भूमिका है बता नहीं सकते। जिस व्यक्ति में पीड़ा नहीं थी, वर्षों से लोग चाहते थे, आप अपने महाप्रासाद को खड़ा होना है वह आस्था पर खड़ा होता घर को अच्छा बनाने योजनाबद्ध ढंग से एक मंजिल दो है, इसे नींव कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। नींव की मंजिल तीन मंजिल चार मंजिल अपने ढंग से स्वतंत्रता से आज तक कोई फोटो नहीं ली। नींव के विषय में तभी खड़ा कर लेते हैं। जहाँ बड़े बाबा विराजमान थे, इतिहास की हम विश्वास करते हैं,जब विशाल प्रासाद को खड़ा हुआ चीज है, ये है नहीं कल से इतिहास पलट गया है। हम देखते हैं। तब हम सोचते हैं कि इसके नीचे कितनी गहरी लोगों की कमजोरी थी, हमारी आस्था की परीक्षा नहीं हुई भूमिका होगी। शिखर की पूजा, शिखर की प्रशंसा सभी थी। अपनी वस्तु अपने आराध्य अपने पूज्य जिनके माध्यम करते हैं,नींव की नहीं होती। नींव रखना अपने आप में से हमें दृष्टि प्राप्त है उनके सिंहासन के लिये महत्त्वपूर्ण है। नींव प्रथम मंगलाचरण है तो कलशारोहण परमीशन दो।"बड़े बाबा से हाथ नहीं मिलाओ, हाथ जोड़ो, अंतिम समापन है। प्रथम मंगलाचरण को महत्त्व दिया हस्तक्षेप नहीं करो, नतमस्तक हो जाओ।" यह मूर्ति जाता है, उपरान्त ही मध्यम एवं अंतिम मंगलाचरण का जिससे तीन लोक प्रकाशित हैं, तीन लोक के नाथ की है। नम्बर आता है। भक्ति, आस्था, रुचि, सम्यग्दर्शन, प्रीति हम लोगों को आस्था चाहिये। वर्षों पहले यह कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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