Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 10
________________ 363 389 409 429 449 469 491 17. आत्मा परम आधार है 18. धर्म आविष्कार है स्वयं का 19. धर्म की मूल भित्तिः अभय 20. पलकन पग पोंछे आज पिया के 21. जिन-शासन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति 22. परमात्मा के मंदिर का द्वार : प्रेम 23. जीवन की भव्यता : अभी और यहीं 24. मांग नहीं—अहोभाव, अहोगीत 25. दर्शन, ज्ञान, चरित्र-और मोक्ष 26. तुम्हारी संपदा—तुम हो 27. साधु का सेवन : आत्मसेवन 28. जीवन का ऋतः भाव, प्रेम, भक्ति 29. मोक्ष का द्वार : सम्यक दृष्टि 30. प्रेम है आत्यंतिक मुक्ति 31. सम्यक दर्शन के आठ अंग 533 553 575 599 619 641 659 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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