Book Title: Jina Pooja Paddhati Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 4
________________ श्री जिनपूजापति जूनी अने नवी १. जिनपूजा-प्रारंभिक अने विकसित रूपमा 'जिनपूजा' आगमिक छ के अनागमिक ? ए सर्वज्ञअरूपित छ अथवा छमस्थ-प्रकल्पित ? ए वातोनी चर्चा न करवां अमो पूजानी सृष्टि क्यारे थई ? आनुं प्रारंभिक रूप शु हतु? विकसित थती थती ए कई स्थितिए पहोंची ? विकास. नी अंतिम कोटिथी गवडीने ए केवी रीते विकृतिने मागें चढे छे अने विपरीत परिणामो लावे छे ? इत्यादि बाबतोने ज अमारा विचारोनुं केन्द्र बनावीशुं. भारतवर्षमा प्रागैतिहासिक कालथी जबे धार्मिक संस्कृतिओ पोतानुं काम करी रही हतीः एक जैन अने बीजी वैदिक. जैन संस्कृतिना प्रवर्तक तीर्थकर अने प्रचारको निग्रन्थ श्रमणो हता, आथी ज जैन संस्कृतिने विद्वानो 'श्रमणसंस्कृति' पण कहे छे. आ संस्कृतिनो अंतिम उद्देश आत्माने त्याग-तपध्यान द्वारा कर्मबन्धनोथी मुक्त करवानो होई आमां त्याग मार्गनी प्रधानता हती. वैदिक संस्कृतिना प्रादुर्भावक ऋषिओ अने प्रचारक ब्राह्मणो होई ए "ब्राह्मणसंस्कृति"ना नामथी पण ओळखाय छे. आ संस्कृतिनो मूलाधार 'अग्निहोत्र' हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 58