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नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।2।।
अश्व का चिह्न पद पद्य में शोभता। पुण्यं तीर्थेश का सर्व मन मोहता।। नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।। नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।3 ।।
एक दिन मेघ का नाश होते दिखां सर्व वैभव तजा और संयम लखा।। नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।4।।
वर्ष चौदह किये मौन की साधनां पा लिया ज्ञान केवल्य शुद्धातमा ।। नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।5।।
श्री समोसर्ण रचना करे धनपती। नर पशु देव देवी औ आये यती।। नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।6।। नाथ की दिव्य अमृत ध्वनि जब खिरे। जैसे तरु से नितर ही सुमना झरें । नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।।7।। शक्ति से सिद्ध जाना है यह आत्मा। जे चले राह शिवपुर हो परमात्मा । नाथ संभव करूँ आपकी अर्चना। आत्मसिद्धी मिले एक ही कामना।। ।। हे प्रभु भक्त पे अब कृपा कीजिए।
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