Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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70 / Jijñāsā
11. श्री कृष्ण का नैतिक चिन्तन एवं दर्शन
राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
कुरुक्षेत्र की पवित्र धर्ममयी धरा पर समस्त वैदिक चिन्तन का साररूपी अमृत गीता के रूप में श्रीकृष्णजी के द्वारा प्रकट किया गया है। इसमें प्रतिपादित मत श्रीकृष्ण स्वयं श्री कृष्ण के ही नहीं है अपितु अनादि वैदिक परम्परा के हैं, अतः वह इन्हें प्रमाणरूप में सादर स्वीकृत करती है। गीता महात्म्य का यह पद्य यही उद्घोषणा कर रहा है
" सर्वोपनिषदो गाव:, दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्।। ""
वेदों के ज्ञानकाण्डीय साररूप में उपनिषदों की गणना की जाती है, क्योंकि दर्शन के श्रुतिप्रस्थान के रूप में हमारी चिन्तन परम्परा उन्हें आद्य स्थान प्रदान करती है। गीता स्मृति प्रस्थान के रूप में स्वीकृत होने पर भी सम्पूर्ण उपनिषदों का सार सरलतम एवं संक्षिप्त रूप में प्रकट कर जन कल्याण का महनीय कार्य सम्पन्न करती है। अतः महाभारतकार इसे 'सर्वशाखमयी' कहते हैं। श्रीकृष्ण के नैतिक चिन्तन एवं दर्शन को अधिगत करने में महाभारतोक्त गीता (भीष्मपर्व अध्याय 25-42) परम प्रमाण मानी जाती है तथापि श्रीकृष्ण के वचनों से अनेक ग्रन्थ सुशोभित हो रहे हैं। गीता में 18 अध्याय एवं 700 श्लोक हैं जिनमें मानव जीवन के उच्चतम नैतिक चिन्तन एवं व्यावहारिक जीवनदर्शन को सुस्पष्ट करते हुए चरम लक्ष्य मुक्ति के सहज मार्ग को शास्त्रीय विधि से विनिर्दिष्ट किया गया है। यह ग्रन्थ आकर्षक संवादशैली या प्रश्नोत्तर रूप में ग्रथित है। यह सत्य है कि गीताशास्त्र सम्पूर्ण विश्व का नीतिशास्त्र है। यह कर्तव्य की शिक्षा, समत्व का पाठ, ज्ञान की भिक्षा तथा शरणागति का उपदेश देकर सम्पूर्ण मानव जगत् का अपूर्व कल्याण करता है अतः सन्त रामसुखदास जी कहते है
" कर्तव्यदीक्षां च समत्वशिक्षां, ज्ञानस्य च भिक्षां शरणागतिं च । ददाति गीता करुणार्द्रभूता, कृष्णेन गीता जगतो हिताय ।। "
साधकसंजीवनी
वैदिक दर्शन की अनुपम व्याख्या के रूप में गीता वेदव्यास जैसे ऋषि से संकलित, आचार्य रामानुज, वल्लभ, मध्व, निम्बार्क अभिनवगुप्त लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, विनोवा भावे, प्रभुपाद, रामसुखदास जैसे आध्यात्मिक सन्त, राजनीति के कर्णधार एवं आचार्य प्रवरों के द्वारा व्याख्यायित है यह पुराणग्रन्थों में प्रशंसित एवं वेदान्त परम्परा में प्रमाणरूप में स्वीकृत तथा विश्व के सहस्रों ज्ञानिजनों से विवेचित है। नीतिशास्त्रकार के रूप में भी कृष्ण का योगदान बहुप्रशंसित है। महाभारत के युद्ध में सफल नीतिकार की भूमिका श्रीकृष्ण के द्वारा ही निभायी गई है
" भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गाम्भीरनीलोत्पला, शल्यावती कृपेण वहनी कर्णेन बेलाकुला ।