Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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शहंशाह अकबर की जैन धर्मनिष्टा : एक समीक्षा / 83
के लिये राजी किया। आचार्यश्री ने भी सोचा कि अकबर सत्यप्रिय एवं उदारप्रकृति शासक है। अत: उसके पास जाने तथा सदुपदेश देने से बहुत कुछ लाभ हो सकता है। शहंशाह की पीठ-पीछे जो कट्टरवादी नृशंस मुस्लिम सिपाही, इस्लाम के नाम पर जुल्म ढा रहे है। मन्दिर तोड़ रहे हैं, लोगों की बहु-बेटियों का अपहरण कर रहे है, जबरन मुसलमान बना रहे हैं, उस पर रोक लगेगी। क्योंकि शहंशाह इन कुकृत्यों से अवगत नहीं है।
मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी सं. 1638 वि. (सन् 1581 ई.) के दिन सूरि महाराज ने फतेहपुर सीकरी के लिये प्रस्थान किया और वह लगभग 6 महीने की पैदल यात्रा के बाद क्रमश: गन्धार बन्दर, महीनदी, बटावरा (बटवल) अहमदाबाद, पाटन (अणहिल्लपट्टण) सिद्धपुरा, सरोतरा ग्राम, अर्बुदाचल, (आबू) सिरोही, सादड़ीनगर, रागपुर (धरणविहार) आउवा, मेड़ता होते हुए सांगानेर पहुंचे। बादशाह ने दूतों से यह समाचार पाते ही थानसिंह, अमीपाल और मानूशाह आदि राजमान्य जैन साहूकारों को धर्माचार्य की उच्चकोटिक अगवानी के लिये भेजा। शहंशाह का हुक्म होते ही बड़े-बड़े सामन्त, सिपहसालार तथा धनकुबेर हाथी, घोडे और रथों से लैस सैन्यटुकड़ी के साथ सांगानेर पहुंचे आचार्यश्री के स्वागतार्थ और उन्हीं के साथ महामुनि हीरविजय की फतेहपुर सीकरी आ गए। ज्येष्ठ वदी त्रयोदशी, शुक्रवार संवत 1639 (सन् 1582 ई.) के दिन उन्होंने नगर के बाहर जगमल कछवाहा के महल में निवास किया और अगले दिन सवेरे ही अपने पट्टशिष्यों तथा भक्तों के साथ वह शाही दरबार में उपस्थित हुए।'
शाही दरबार में आचार्य हीरविजय सूरि के साथ जाने वाले तेरह लोग थे, सैद्धान्तिक शिरोमणि महोपाध्याय श्री विमलहर्षगणि, अष्टोत्तरशतावधान विधायक श्री शान्तिचन्द्रगणि, पं. सहजसागरगणि. श्रीसिंहविमलगणि, (हीरसौभाग्यमहाकाव्यकार के गुरू) विजयप्रशस्तिमहाकाव्यकर्ता पं. हेमविजयगणि, वैयाकरणचूडामणि मं. लाभविजययगणि, आचार्यश्री के अन्तरंग श्री धनविजयगणि आदि।
शहंशाह से सूरि जी की भेंट तत्काल नहीं हो पाई। वह किसी अन्य प्रसंग में कुछ विशिष्ट लोगों से विचार-विमर्श कर रहा था। फलतः उसने प्राथमिक स्वागत सत्कार एवं आतिथ्य के लिये अबुलफल को भेजा। शेख ने सब को स्थिति से अवगत कराया तथा विनम्रतापूर्वक सबको अपने महल में ले गया। शेख ने विनम्रतापूर्वक धर्म के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न किये तथा खुदा एवं कुरान के विषय मे भी पूछा। आचार्यश्री ने पूरी निर्भयता के साथ युक्तिसंगत प्रमाणों के साथ खण्डनात्मक उत्तर दिया जिसे सुनकर विनयमूर्ति अबुल फजल ने बस इतना कहा, आपके कथन से तो यही सिद्ध होता है कि हमारे कुरान में बहुत सी तथ्येतर बातें लिखी हुई हैं।'
इंद गदित्वा विरते व्रतीन्द्र शेख: पुनर्वाचमियामुवाच।
विद्रायते तद्बहुगर्यवाचि वीक्षीण तथ्येतरता तुदक्तौ।। हीर. 23.148 अपराहणवेला में, शंहशाह ने आचार्यश्री को शाही दरबारी में लिवा लाने के लिये सन्देशियां भेजा अबुलफजल के पास। तब तक आचार्यश्री पार्श्ववर्ती कर्णराजा के महल में, मध्याहन का आहार ग्रहण कर चुके थे जो पास के गांव से भिक्षाटन कर लाया गया था तथा पूर्णतः नीरस था। ___ सूरि जी के दरबार में प्रवेश करते ही अकबर सिंहासन से उठा और कुछ कदम आगे बढ़कर, श्रद्धापूर्वक सूरि जी को प्रणाम किया। उसके तीनों पुत्रों, शेख सलीम, मुराद और दानियाल ने भी पिता की ही मुद्रा में झुक कर प्रणाम किया। सूरि जी ने सबको आशीर्वाद दिया।
'गुरू जी! चंगे तो हो' ? कहते हुए शहंशाह अकबर ने सूरि जी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने विशिष्ट कक्ष में ले गया। कक्ष में मूल्यवान गलीचे बिछे थे, इसलिये सूरि जी ने उस पर पैर रखने का निषेध किया। सम्राट को आश्चर्य हुआ तो आचार्य ने कहा, राजन्! संभवत: इसके नीचे चींटी आदि कोई जीव जो तो वे मेरे पैर के भार से मर सकते हैं इसलिये हमारे शास्त्रों में वस्त्राच्छन्न प्रदेश पर पांव रखने की मनाही की गई है।