Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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उत्तरउपनिवेशवाद और प्राच्यवाद: संकल्पना और स्वरूप / 175
था कि पूँजीवाद ने अपना जन्मोत्सव आक्रामक संघर्ष चलाकर मनाया था। इस लड़ाई में उसने अपने तरकस के हर तीर का उपयोग किया था, यहाँ तक कि साहित्य, ललित कला एवं संस्कृति का भी किन्तु जिस चीज ने मध्यकालीन शूरवीरता को फूहड़ता एवं स्थायी मजाक का विषय बना दिया था वह थी स्पैनिश लेखक सर्वान्ते का उपन्यास 'डॉनक्विग्जॉट । सामंतशाही और कुलीनता का सबसे हास्यास्पद प्रतिनिधि डॉनक्विग्जॉट पूँजीपतियों के शस्त्रागार का सबसे नफीस हथियार था । आज एक ऐसे ही सर्वान्ते की जरूरत है जो प्राच्यवाद की साम्राज्यवादी शिक्षा के साथ वैसा ही न्याय करे, जैसाकि खुद एक दौर में प्राच्यवादी बुद्धिजीवियों ने उपनिवेशों की जनता, उनके धर्म, इतिहास, संस्कृति एवं ज्ञान के साथ किया था, जैसा कि पूँजीपतियों ने एक दौर में सामंतवाद एवं चर्च के साथ किया था । उत्तरऔपनिवेशिक समाजों की बदली हुई परिस्थितियों में प्राच्यवाद की ठग विद्या का कोई अर्थ हो सकता है तो बस इतना ही। रैमंड विलियम्स ने 'रीसोर्सेज ऑफ होप' में एक जगह लिखा है कि बुरे समय से भी हम उतना ही सीख सकते हैं जितना अच्छे समय से, क्योंकि तारीख किसी के मनमुताबिक चलने को मोहताज नहीं है और न दुनिया कभी उम्मीद से खाली होती है। इतिहास के प्रति वफादारी जरूरी है। क्योंकि वर्तमान की समझदारी उसी पर निर्भर है। अमर्त्य सेन ने बिल्कुल ठीक लिखा है कि 'इतिहास की व्याख्या करने वाले पैमानों के चुनाव में समकालीन दुनिया की विभिन्न चुनौतियों के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता का भी ख्याल रखना होता है। हम इतिहास के बिना तो रह सकते हैं लेकिन इमें इतिहास में ही रहने की भी जरूरत नहीं है। 30
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