Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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Jijñāsā
20. परम्परा एवं आधुनिकता बनाम इतिहास बोध : भारतीय संदर्भ
विभा उपाध्याय
यूरोप में पुनर्जागरण के कारण आधुनिकतावाद का स्वर मुखरित हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी में फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी में 'आधुनिकता की अवधारणा को लेकर कई आंदोलन (movement) छिड़े। आधुनिकता का अर्थ मानववाद, सहअस्तित्व, चर्च से मुक्ति, नया आत्मविश्वास, वैज्ञानिक मान्यताओं में विश्वास माना गया। इसका उद्देश्य परम्पराओं और आधुनिक (वैज्ञानिक एवं तार्किक) विचारों के मध्य समन्वय बैठाना और विकास करना था। जबकि Pope PiusX ने 1907 में इसका विरोध किया, क्योंकि इस अवधारणा ने चर्च के निरंकुश प्रभाव पर भी संकट पैदा कर दिया था, किन्तु अन्ततोगत्वा चर्च भी इस आधुनिकता के प्रहार से नही बच पाया। यद्यपि आधुनिकता ने विकास का मार्ग प्रशस्त किया था, किन्तु अपने को आधुनिक स्थापित करने की होड़ में आधुनिक समाज अथवा मानव अपनी परम्पराओं से विमुख होने लगा। French Enlightenment' की घोषणाओं ने यह संदेश दिया था कि जागृति का अर्थ अपनी विरासत को नकारना नहीं है। पुनर्जागरण का केन्द्र बिन्दु मानव था और मानव का अपने मूल से जुड़ा रहना भी पुनर्जागरण का एक पक्ष था, वहीं अपनी सांस्कृतिक पहचान को स्थापित करने का भी पुनर्जागरण ने अवसर दिया था। आधुनिक मानव इस द्वन्द्व में उलझ गया।
19वीं शताब्दी में फ्रांस की राज्य क्रांति ने यह विश्वास स्थापित करने का प्रयास किया, कि जो कुछ पुराना था, विशेष रुप से मध्यकालीन, वह अच्छा नहीं था। नवीन संस्थाओं का जन्म मात्र, वैचारिक सत्य के आधार पर संभव है। इस वैचारिक क्रांति ने इतिहास लेखन को भी प्रभावित किया।
यूरोप का इतिहास लेखन भी इससे अछूता नही रहा। नई वैचारिक श्रेणियाँ, उदाहरण के लिए 'Capitalism', 'Universalization', Globalization 'आदि-आदि' ने इतिहास की नई धाराओं को जन्म दिया। इतिहास में Concept of Modernity, Post Modernism आदि-आदि व्याख्याएँ जुड़ने लगीं। 'Philosophy of History (इतिहास-दर्शन) नया अकादमिक अनुशासन आया और इतिहास की अनेकों व्याख्याओं, और अनुमानों को स्थान प्राप्त होने लगा। अनेकों व्याख्याओं ने पुरातन पर प्रश्न खड़े करने शुरू कर दिए और भारत की परम्पराएँ, समाज तो इसका सबसे अच्छा माध्यम बना। किन्तु इतिहास लेखन में इसी परम्परा में इतिहासकारों का एक वर्ग वह आया जो पुरातनपंथी लेखन का अनुकरण कर रहा था, उदाहरण के लिए भले ही टॉयनबी ही क्यों न हो, उसने स्पेंग्लर का अनुकरण कर प्राचीन के पतन के भीतर ही नए के निर्माण की संभावनाएँ प्रस्तुत की। वहीं दूसरी ओर भौतिकवादी, वामपंथी, परम्परावादी विपक्षी दल में बैठ गए, कि जो परम्परा में लिखा गया, उसका विरोध करने का बीड़ा उठाया।