Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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वैदिक वाङ्गमय : ऐतिहासिक दृष्टि एवं व्याख्या का संकट / 161
दरअसल वैदिक वाङ्गमय की व्याख्या का सारा संकट यथार्थ की परस्पर परिभाषा के सन्दर्भ में आधुनिक और परम्परागत दृष्टिभेद के कारण है। दोनों के अस्तित्वबोध का स्वरूप विलग है। जबकि किसी भी वाङ्गमय की व्याख्या उसके युग-परिप्रेक्ष्य के प्रसंग में ही की जानी चाहिए। क्योंकि वैदिक कवि या काव्य किसी कालपुरुष का मुंशी या रिकार्ड-कीपर नहीं। उसका साध्य घटना के बाह्य अस्तित्व से ही नहीं बल्कि उसकी मौलिक प्रकृति से भी सम्पृक्त है।
सन्दर्भ 1. उद्धृत संचयिता, सम्पादक राधाबल्लभ त्रिपाठी, पृ0 114 2. वही, पृ0 176 3. ऋग्वेद 10.191.3 4. गोविन्द चन्द्र पाण्डे, वैदिक संस्कृति, पृ07 5. जी0सी0 पाण्डे, मीनिंग एण्ड प्रॉसेस ऑफ कल्चर, पृ0 20 6. सुन्दरकाण्ड, रामचरितमानस 7. ऋत की व्याख्या के लिए द्रष्टव्यः वैदिक संस्कृति, गोविन्द चन्द्र पाण्डे 8. ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य सम्पादक मनीष कुमार पाठक 9. वही, पृष्ठ 25 से आगे 10. बाल्मीकि रामायण, गीता प्रेस, गोरखपुर 11. ब्रह्मसूत्र : 1.4.16, सम्पादक मनीष कुमार पाठक