Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 14
________________ ( ६ ) महात्मा भगवान् दीन के विचार उनके लेख "बाल जैनेन्द्र" में प्रस्तुत किये हैं। उसे पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि उनके पिता जी की मृत्यु उनके जन्म के दो वर्ष बाद ही हो गई थी और उनके जीवन-निर्माण में उनकी माता का ही प्रमुख प्रभाव रहा। जैनेन्द्र-परिवार का परिचय देते हुए महात्मा जी ने एक स्थान पर लिखा है कि-"रामदेवी बाई के कुल मिलाकर छः बच्चे हुए । तीन छोटी उम्र में चल बसे और तीन आज तक जीवित हैं । दोनों लड़कियाँ बड़ी हैं और लड़का उनसे छोटा । वही छोटा लड़का जैनेन्द्रकुमार के नाम से प्रसिद्ध है और समाज उसे अच्छी तरह जानता है।" १९०७ में श्रीमती रामदेवी बाई के पतिदेव का देहान्त हो जाने पर जनेन्द्र का लालन-पालन महात्मा जी की देख-रेख में होने लगा। जैनेन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा ब्रह्मचारी आश्रम जन गुरुकुल में हुई । यहाँ प्रसंग-वश इस बात का भी उल्लेख कर देना सम्भवतः अनुचित न होगा कि इस साहित्यकार का नाम प्रानन्दीलाल से जैनेन्द्र होना गुरुकुल की ही देन है । गुरुकुल बन्द हो जाने पर जैनेन्द्र जी ने प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में मैट्रिक परीक्षा पंजाब यूनीवर्सिटी से उत्तीर्ण की और इन्टरमीजिएट की पढ़ाई के लिए वे बनारस विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हो गए, लेकिन राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारम्भ होने पर १९२०-२१ में वे पढ़ाई छोड़कर दिल्ली प्रा गए । कुल मिलाकर वे तीन बार जेल गए। पहली बार जेल से छूटने के बाद जैनेन्द्र ने दिल्ली में नौकरी की तलाश की. पर उन्हें कोई भी स्थान नहीं मिल पाया । जेल जाने से पूर्व अपनी माता जी की आर्थिक सहायता में जो 'फरनीचर' का काम उन्होंने शुरु किया था, वह भी छूट गया। कई बार मैं एकान्त के क्षणों में सोचता हूँ कि यदि जैनेन्द्र जी को उस समय कोई नौकरी मिल जाती या उनका 'बिज़नस' चल निकला होता, तो सम्भवतः इस समस्या-मूलक निर्धान्त प्रहरी से हिन्दी-साहित्य सदा-सदा के लिए ही बंचित रह जाता। गाँधी, शरद् और टालस्टाय की कृतियों से प्रभावित इस निबन्धकार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा दार्शनिक के जीवन की कुछेक घटनाओं का विवेचन करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जैनेन्द्र जी मानव के निर्माण के लिए प्रारम्भ से ही निरन्तर यत्नशील रहे हैं । उन्होंने स्वयं संघर्ष कर सत्य के प्रयोगों द्वारा अपने जीवन को अधिक सार्थक और अन्य व्यक्तियों के लिए अधिक उपयोगी बनाने की हर क्षण भरसक चेष्टा की है।

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