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( ८ ) हाँ, हिन्दी-पाठकों के गम्भीर अध्ययन और ठोस विश्लेषण के लिए एक गहरी चुनौती अवश्य उपस्थित करती हैं।
इन सभी कारणों से मेरे मन में यह विचार प्रबल हो उठा कि हमें जैनेन्द्रसाहित्य का निष्पक्ष और गंभीर अध्ययन करके किसी भी पाठक के प्रारोपों की रहस्यमयता को अनावृत अवश्य कर देना चाहिये । जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व का जन्म
जैनेन्द्र के भौतिक स्वरूप को समझने वाले कुछेक व्यक्तियों से मैं एक दिन यों ही प्रसंग छेड़ बैठा कि हमें जैनेन्द्र जी के साहित्य के माध्यम से उनकी मानसिक, सामाजिक और नियतिवादी प्रवृत्तियों को विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत कराना चाहिए । इसी ध्येय की पूर्ति को दृष्टि में रखकर मैंने "जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व" में जैनेन्द्र के वास्तविक साहित्यिक स्वरूप को मूर्धन्य विद्वानों के लेखों और उनकी समीक्षात्रों के द्वारा उपस्थित करने की चेष्टा की है। ये सभी लेख उन विद्वानों के जैनेन्द्र जी के प्रति उनके अपने ही विचारों का प्रतिपादन करते हैं और मेरा ध्येय इन्हें संकलित करते समय विभिन्न दर्पणों में जनेन्द्र जी के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों को ही देखने का रहा है ।
___जनेन्द्र की कल्पना को, उनकी भव्य मानवतावादी मूल प्रवृत्ति को और उनके बौद्धिक कमलोक के विभिन्न त्रिया-कलापों को समझने की इच्छा से ही मैंने विभिन्न विद्वानों से उनके जैनेन्द्र साहित्य के विषय में विभिन्न मत एकत्रित करके प्रस्तुत ग्रन्थ में उपस्थित कर दिये हैं। इन लेखों से जैनेन्द्र की टेकनीक को, उनके वस्तु-विधान कौशल को और उनकी कला-पटुता को समझने में हमें पर्याप्त सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा ध्र व विश्वास है । जीवन-झांकी
ऐसे साहित्यकार और चिन्तक के कभी-कभी विवादास्पद से व्यक्तित्व को समझने की चेष्टा करते समय प्रावश्यक हो जाता है कि हम उनके प्रारंभिक जीवन की गतिविधियों पर एक विहंगम दृष्टि डालकर देखते चलें और संक्षेप में उनके जीवन की एक झांकी प्रस्तुत कर दें।
व्यक्ति के निर्माण में उनके माता-पिता का योग अनिवार्य रूप से रहता है। १९०५ में कौड़ियागंज ग्राम में जैनेन्द्र का जन्म रामदेवी बाई जी की कोख से हमा था। उनके जन्म और प्रारम्भिक जीवन के विषय में हमने उनके मामा स्वर्गीय