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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा * लोकाशाह को अर्धमागधी भाषा का ज्ञान नहीं था। पृ. २५..
* लोकाशाह ने मात्र क्रोध और द्वेष से ही सूत्रों का तथा मूर्तिपूजा का विरोध किया था और स्थानकवासियों ने सूत्रों के गलत-खोटे अर्थ करके मूर्तिपूजा का निषेध किया है। इसलिए इनके कार्यों में धर्म का उद्योत तो है ही नहीं, किन्तु धर्म की हानि ही है * (पृ. २९)
* अधर्म की प्रकपणा करनेवाले और जैनसमाज में धर्मविरुद्ध की बातों और धर्मविरुद्ध सिद्धान्तों को फैलानेवाले व्यक्ति (लोकाशाह) को अपने आप्त (मान्य) पुरुष के रुप में मानना, यह जैनधर्मी के लिए मिथ्यात्व को अपनाने जैसा है। * (पृ. ४७)
यानि लोकाशाह धर्मप्राण नहीं अपित धर्मनाशक ही थे । उनकी प्रवृत्तियों में धर्म का उद्योत नहीं था, किन्तु धर्म का अंधकार ही था। इसलिए स्थानकवासी सज्जनों को हमारी नम्र विनंती है कि वे लोंकाशाह कथित बेबुनियाद - अनागमिक-उन्मार्ग का त्याग कर अपना आत्मकल्याण साधे । लोंकागच्छीय यति भानुचन्द्र जी लिखते हैं कि 'लोंकाशाह' ने भस्मग्रह का निवारण किया । किन्तु शास्त्रीय आधार से न ही वह समय था, न ही ऐसे मिथ्यात्व को क्रियोद्धार कहना उचित है। भस्मग्रह के प्रभाव से अनेक निन्हव हुए । उनमें से एक थे - लोकाशाह ।
हमारा यह प्रश्न है कि - यदि स्थानकवासी अपने पंथ को लोकाशाह से भी पूर्व का बताते हैं तो
(१) लोकाशाह के गुरु का नाम क्या था ?
(२) लोंकाशाह के पूर्व में स्थानकवासी मत में कौन-कौन से बड़े विद्वान् आचार्यादि हुए ? उनके नाम बताइये ।
(३) उन्होंने कौन कौन से शास्त्रों की रचना की थी ?
(४) उन्होंने कौन कौन से शासनोन्नतिकारी, शासनप्रभावक कार्य किए थे ?
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