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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा से संगत अर्थ किया है वे डोशीजी के हिसाब से गुरुओं के पास अध्ययन नहीं करनेवाले समझने ?
पृ. ३३ (१) देवलोक की प्रतिमाए तीर्थंकर प्रतिमा नहीं है।
समीक्षा → इसके पुष्टि में डोशीजी ने शब्दकोशों के पाठ दिये हैं उन सबमें सबसे पहले रागद्वेष निराकरण करने वाले, अरिहंत आदि अर्थ ही दीए है, उस अतिप्रसिद्ध अर्थ को जो टीकाओं में मिलता है, छोड़कर दूसरे असंगत अर्थ को लेने की डोशीजी की इच्छा क्यों हुई ? खुद ही लिखते है "किसी भी शब्द का अर्थ प्रकरण के भावों के अनुकूल किया जाए तो अनर्थ नही होता, नही तो महान अनर्थ हो जाता है ।" और खुद ही उससे विपरीत प्रवृत्ति करके प्रकरण के प्रतिकूल अर्थ करके महान् अनर्थ पैदा कर रहे है । शाश्वती प्रतिमाएँ तीर्थंकर प्रतिमा नहीं है इसकी पुष्टि में डोशीजीने सात युक्तियाँ दी है उन पर विचार करेंगे ।
(अ) वे शाश्वत है - समीक्षा → तीर्थंकर नाम-रुप से शाश्वत नहीं है, अतः उनकी प्रतिमाएँ शाश्वत नहीं हो सकती ऐसा डोशीजी का कहना है । वह बराबर नही है चूँकि आगम खुद ही ४ नाम शाश्वत बता रहे हैं,
और वर्तमान-भूत-भविष्य चौवीसी आदि में ये ४ नामवाले तीर्थंकर दिखाई देते है, अतः नाम से ये ४ तीर्थंकर शाश्वत है, हरेक काल में इन ४ नामवाले तीर्थंकर अवश्य होंगे । नाम के शाश्वतपने में खुद आगम ही प्रमाण है । प्रतिमाओं का वर्णन तीर्थंकर से ही मिलता है अतः वे मूर्तियाँ तीर्थंकरो की ही हैं । इतर मिथ्यात्वी देवों की मूर्तियों का इस प्रकार वर्णन प्रभु के आगम में करना किसी भी तटस्थ व्यक्ति को मानने में नहीं आएगा । इन नामवाले कोई मिथ्यात्वी देव भी प्रसिद्ध नहीं हैं, और कोई अप्रसिद्ध देव हो भी जाएँ तो वे देव कहाँ शाश्वत हैं ? उनकी शाश्वत मूर्तियाँ भी कैसे संभव है ? इसका विचार तो डोशीजी ने किया ही नही । अतः वे शाश्वत प्रतिमाएँ अवश्य तीर्थंकरों की ही है, ऐसा हमारा नहीं, आगमों का कथन है ।
(आ) अरुणनेत्र - समीक्षा - डोशीजी लोगों को उल्टे रस्ते ले जाने की चालाकी कर रहे है । आँखे तो अंकरत्नमय है "अंकामयाणि
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