Book Title: Jainagam Siddh Murtipuja
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 297
________________ २९४ परिशिष्ठ-७ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा भारत का ध्वज और दुकान में मिलता त्रिरंगी कपडे में भी कोई फर्क नहीं रहेगा। रिजर्व बैंक के रूपये के नोट का टुकडा एवं कागज़ के टुकडे में भी फिर क्या तफावत रहेगा? दुनिया में जब विशेष धर्म के आरोपण से उन वस्तुओं में विशिष्ठता की परिकल्पना की जाती है तब सामान्य धर्म गौण बन जाता है। यह सत्य की अवगणना करने का किसी का सामर्थ्य नहीं है । जैसे, लग्नविधि के परिसंस्कार से थोडे ही क्षणों में स्त्री में पत्नीत्व का आरोपण हो जाता है। त्रिरंगी कपडा जब भारत ध्वज बन जाता है तब उसकी अदब भारत का प्राईम मिनिष्टर भी पूरी तरह से रखता है, कागज जब रुपया बन जाता है तब उसकी किंमत कितनी बढ जाती है, उसी तरह विशेष धर्म में प्रतिमा में देवत्व एवं परमात्मत्व का विन्यास होने से उसका मल्य अनंत हो जाता है। तब प्रतिमा श्रद्धालु जन के लिए एक विशिष्ठ आस्था का महान केन्द्र भी बन जाती है। कोई कहता है कि मूर्ति तो जड है... जड की उपासना से क्या लाभ है ? लेकिन याद रहे की जड की यदि उपेक्षा की गई तो दुनिया का कोई व्यवहार भी नहीं चलेगा । प्रभु का नाम मन्त्र भी जड है क्योंकि वह अक्षर या शब्द है, फिर भी उसे स्मरण करनेवाला चेतन होने से उसकी स्पष्ट असर सबको अनुभूत है। शास्त्रग्रन्थों में, पुस्तकों में, तार-टपाल में, न्युझपेपर में, जाहेरातो में और वस्तुओं के लेबल में नाम एवं अक्षर के बिना ओर क्या है? लेकिन उन्हें पढने से हमें कई प्रकार का ज्ञान, संवेदन, मन में तरंगे एवं लहरे पैदा होती है। विज्ञान के नितनये आविष्कार के युग में जड की शक्ति समझना कठिन नहीं है । रेडियो, टी.वी., फोन, केल्क्युलेटर, कोम्प्युटर, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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