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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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है । दृष्टांत इस प्रकार होना चाहिए - एक सद्गुणी सेठ का एक पुत्र पिता के आदर्श को ठुकराकर उनके नाम को कलंकित करनेवाला, उसके दो पुत्र जिसमें से प्रथम पुत्र ने पिता के आदर्शों को भवभ्रमण का कारण समक्षकर दादा के आदर्शों को अपनाया । दूसरे पुत्र ने पिता के दोषयुक्त आदर्शों को ही अपनाया उसमें और भी नये असभ्य रीति रिवाजों को बढ़ाया । अब आप बताइये इन दो में कौन सुपुत्र कहलाने योग्य हैं ? कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रथम सुपुत्र, दूसरा कुपुत्र । इसमें सद्गुणी सेठ = तीर्थंकर परमात्मा, उनके पुत्र के स्थान पर लोंकाशाह, प्रथम पुत्र- लोंकागच्छ के यति, दूसरा पुत्र स्थानकवासी साधु ।
डोशीजी ! तर्क और दृष्टांत जैसे घटाने वैसे घट सकते हैं । सनातन सत्य तो एक ही रहता है, उसमें फेरफार नहीं होता है, जो प्रभु द्वारा स्थापना निक्षेप की पूज्यता आगमों में प्ररूपित है वही सनातन सत्य है ।
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पानी पर बनी पड़ी
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