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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा २६. स्थापनासत्य में समझाफेर → समीक्षा
इसमें डोशीजी का ही समझफेर है। देखिये - जनपद सम्मत-ठवणा - नाम - रूप - प्रतीत्य-व्यवहार-भाव-योग-उपमा ये दस सत्य ठाणांग और पन्नवणा सूत्र में बताये हैं । ___इनमें सभी स्थान में अनुपपत्ति खडी होती है, उसका समाधान तत्तत् सत्य मानने से ही होता है । इसीलिये ये १० ही सत्य बताये हैं । वह इस प्रकार
__ (१) कोंकण मे पानी को पिच्च कहते हैं । पानी को पयः कहते हैं पिच्च कैसे ? जनपद सत्य से कहा जाता है । उस देश में ऐसा प्रयोग सत्य है।
(२) कुमुद-कुवलय-उत्पल सभी पंक कीचड़ में उत्पन्न होने पर भी अरविंद को ही पंकज कहते हैं ऐसा क्यों ? सकल लोकसम्मत होने से उसे ही पंकज कहना दूसरों को नहीं कहना सम्मत सत्य है।
(३) १०० अंक १००० अंक आदि को १०० या १००० की संख्या कैसे कहते हो वह तो अंक है ? वैसे ही कागज के टुकड़े पर छाप लगने पर वह नोट कैसे कही जाती है ? कागज का टुकडा ही तो है ? दोनो स्थापना सत्य के हिसाब से क्रमशः संख्या और नोट कहे जाते हैं।
(४) कुल का वर्धन (वृद्धि) नहीं करने पर भी कुलवर्धन नाम से उस व्यक्ति को क्यों बुलाया जाता है ? नामसत्य के कारण उस प्रकार से बुलाने में दोष नहीं है।
(५) दंभ से जिसने प्रवज्या ली है, वह प्रव्रजित कैसे कहलाता है ? रूप सत्य से वैसे कहने में दोष नहीं हैं ।
(६) अनामिका में कनिष्ठा की अपेक्षा दीर्घत्व मध्यमा की अपेक्षा से हुस्वत्व कैसे ? एक में इस्वत्व-दीर्घत्व दोनों परस्पर विरुद्ध गुण कैसे ? प्रतीत्य सत्य की अपेक्षा उसे हुस्व-दीर्घ कहने में दोष नहीं है । अलग
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