________________
२०२
- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा (४०) सत्रों में जिन प्रतिमा का अधिकार ०१ श्री आचारांग सूत्र की नियुक्ति में उल्लेख है कि
अष्टापद, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा से समकित निर्मल होता है एवं आत्मा का विकास होता है । श्रीसूत्रकृतांग सूत्र में आर्दकुमार द्वारा जिन प्रतिमा पूजी जाने का वर्णन
है। ०३ श्री स्थानांग सूत्र में ऋषभ, वर्धमान, चन्द्रानन, वारिषेण इन चार शाश्वत
प्रतिमाओं का उल्लेख है।
श्री समवायांग सूत्र में ५२ जिनालय मंदिर का उल्लेख है। ०५ श्री भगवती सूत्र में पाठ है कि रूचक द्वीप एवं नंदीश्वर द्वीप आदि की
यात्रा करते हुए जंघाचारण, विद्याचारण मुनि जिन प्रतिमाओं को वंदन करते हैं। श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में द्रौपदी द्वारा जिनप्रतिमा पूजा का विस्तार से वर्णन है। श्री उपासकदशांग सूत्र में आनन्द श्रावक के अभिग्रह का वर्णन है जिसमें वह अभिग्रह लेता है कि अन्यतीर्थियों द्वारा ग्रहित जिन प्रतिमाओं को वह वंदना नहीं करेगा। इसका अर्थ स्पष्ट है कि अपने संघ द्वारा संचालित विधि चैत्यों की वंदना करेगा । श्री अनुत्तररोपपातिक दशांग सूत्र में नगर के वर्णन में जिन मंदिर का
उल्लेख है। ०९ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में मुनिराज द्वारा जिन मंदिर की आशातना को
दूर करने का पाठ है। १०. श्री औपपातिक सूत्र में अंबड संन्यासी द्वारा जिन प्रतिमा को वंदन करने
का उल्लेख है। ११. श्री राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याभ देव द्वारा जिनप्रतिमा पूजा करने का उल्लेख
उपलब्ध होता है। १२. श्री जीवाभिगम सूत्र में विजय देव द्वारा जिन प्रतिमा की पूजा करने
०७
०८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org