________________
२००
- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा (१०) शत्रुजय, गिरनारजी, सम्मेतशिखर, पावापुरी, आबूजी, राणकपुरजी शंखेश्वरजी, तारंगाजी आदि भव्य तीर्थों की यात्रा को छोडकर स्थानकवासी लोग शिरडी, वैष्णोदेवी, केदारनाथ आदि में भटकते हैं, इसे बंद करना चाहिए ।
(११) स्थानकवासी संतो ने मूर्तिपूजा न मानने के लिए • आगमों को अमान्य किया, • सूत्रों को उड़ाया। • सूत्रों के पाठ बदल दिये। • सूत्रों के अर्थ उससे असंगत किए । • इतिहास को विकृत किया । • पूर्वाचार्यों को अमान्य किया ।
और मोक्षमार्ग के बजाए उन्मार्ग की ओर कहीं भटक गये ।
(१२) "जैनागमों में मूर्तिपूजा कहीं नहीं है" ऐसे अपने मनमाने अभिप्राय को सिद्ध करने के लिए - इतनी सारी गडबडी करनी पडती है, इससे ही यह सिद्ध होता है कि - स्थानकवासियों की मान्यता बिलकुल असत्य है । स्थानकवासियों का ऐसा अभिप्राय सच्चा नहीं है ।
(१३) आप्त-मान्य-पूजनीय पुरूष के रूप में
श्री भद्रबाहुस्वामी, श्री उमास्वाति महाराज, श्री हरिभद्रसूरि म, श्रीसिद्धसेनसूरि, श्री मानतुंगसूरि म., श्री अभयदेवसूरि म. श्री मलयगिरि म., श्री शांतिसूरिजी आदि धुरंधर संयमी, अगाध ज्ञानियों को छोडकर अन्यधर्मी से भावित, असंयमी लोकाशाह को धर्मप्राण मानना, अपना मत प्रवर्तक मानना यह भी स्थानकवासियों का महान् अज्ञान है, इसे छोडना चाहिए । इति. __ इस पूरे लेखन में मुझसे जिनाज्ञा-जिनागमों के विरूद्ध कुछ भी लिखा गया हों तो तीन योग-तीन करण से क्षमा चाहता हूँ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org