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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
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करने के विषय में उनका विवाद यति से हो गया और लोंकाशाह मंदिर और मूर्ति के वैरी - विरोधी बन गये ।
स्थानकवासी संत आदि लोंकाशाह के विषय में जो प्रशंसा के पहाड़ रचते हैं, वे सर्वथा असत्य और गलत ही है। स्थानकवासी विद्वान इतिहासवेत्ता श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह अपनी किताब ऐतिहासिक नोंध में लिखते हैं कि
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* मैं इस बात को अंगीकार करता हूँ कि मुझे मिली हुई लोंका शाह विषयक हकीकतों पर मुझे विश्वास नहीं है । तथा लोंकाशाह के विषय में हम अभी अंधेरे में ही हैं ।
* लोकाशाह कौन थे ? कब हुए ? कहाँ कहाँ फिरे ? इत्यादि बातें आज हम पक्की तरह से नहीं कह सकते हैं । : ( ऐतिहासिक नोंध - पृ. ५६ )
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आगे वे लोंकाशाह के विषय में लिखते हैं कि
* पर इस तरह का उल्लेख उनके निर्गुण भक्तोंने कहीं नहीं किया कि लोंकाशाह किस स्थान में जन्में ? कब उनका देहान्त हुआ ? उनका घर संसार कैसे चलता था ? वे किस सूरत के थे ? उनके पास कौन कौन से शास्त्र थे ? इत्यादि हम कुछ नहीं जानते हैं । : ऐतिहासिक नोंध पृ.
८७ )
इस प्रकार स्थानक मत के आद्य प्रवर्तक लोंकाशाह के विषय में सदंतर अंधकार होते हुए भी स्थानकवासी संत लोंकाशाह के विषय में बढ़ा चढ़ाकर उपमाओं का सागर बहाते हैं । उनको धर्मप्राण मानते है, धर्म के उद्योतक मानते हैं, पर यह सर्वथा असत्य है क्योंकि लोंकाशाह के विषय में दूसरे स्थानकवासी सत्यप्रिय पंडित श्री नगीनदास गिरधरलाल शाह अपनी ऐतिहासिक सुप्रसिद्ध किताब "लोंकाशाह और धर्मचर्चा" में लिखते हैं कि
• लोंका शाहने धर्म का उद्धार किया ही नहीं था, सत्य पूछो तो उन्होंने अधर्म का ही प्रतिपादन किया था । (पृ. २९)
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