Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 277
________________ 2601 Jaina Graotha Bhandars in Rajasthan 9. PASA NAHA CARIU (Parsvanatha Carita) This work was written by Asawala son of Laksmana. It was completed in Samvat 1479 (1422 A.D.) at Karahala village. The poet took one year in completing the work. The work contains 13 Sandhis in which life story of Parśvanātha has been described. A manuscript of this work is preserved in the Grāntha Bhandar of Jaina temple Terapanthi, Jaipur. The beginning and end of the work is as follows: BEGINNING: सिवसुह सर सारंगहो सुयमारगहो सारग कहो गुणमरियो । मणमि मुअण सारंगहो खमसारगहो पणविवि पास जिरणहो चरिमो॥ भाविय सिरि मूलसंघचरणु, सिरि बलयारयगण वित्थरणु । पर हरिय-कुमय पोमायरिउ, पायरिय सामि गुणगण भरिउ ।। धरमचदु व पहचंदायरिमो, पायरिय रयण जस पहु धरिमो। धरि पंचमहव्वय कामरणु, रणुकय पंचिदिय संहरणु ।। वर घम्म पयासउ सावयहं, वयधारि मुणीसर भावयह । भवियण मण पोमारणदयरु मुणिपोमरणदि तहो पट्ट वरु । हरि समज ण मविया तुच्छ मरणु, मणहरइ पइट्ठ जिणवर भवरणु । वरभवरण मणि जस पायडिउ, पायडु ण प्रगग मोहगडिउ । रणडिया वय रयणत्तय धरणु धर रयगत्तय गुणवित्थरगु । : घत्ता : तहो पट्टवरससि रणामें मुहममि मुरिण पय-पक्रयचन्द हो। कुलु खित्ति पयास मि पहु माहासमि, सघाहिव हो वहो अणिव हो । END : एकवीरहो रिणवू इ कुच्छराई, सत्तरि सहु चउसय वत्थरोई। पच्छइ सिरि णिव विक्कम गयाई, एउणसीदी सहुँचउदहसयाई । भादव तम एयारस मुरणेहु, वरि सिक्के पूरिउ गथु एहु । पचाहिव वीससयाइ सुत्त, सहसई चयारि मंडरिणहि जुतु । बहलवखरण मूगा सुउ बरिठ्ठ, पाणंद महेसर भाइ जेठ्ठ । जसु पचगुत्त सोहति याइ, हुम करम रयण मह मयरणराई। सो करम उलेविरणु सज्जणाह, माहासइ गुरिणयण गुण मरणाह । जो दुविहलकारइ मुणेइ, जो जिणसासरिण दसणु जणे ।

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