Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 320
________________ Material for Research [ 303 deals with the the life of Lord Pårsvanātha, the twentythird Tirthankara. It is written in simple Rajsthani language containing poetic beauty. The work is completed in 166 slanzas. The manuscript is preserved in the Sastra Bhandar of Caudhari's temple Mālpură (Tonk). The author was the pupil of Guna Candra in the time of Nemi Cand. The manuscript was written by Śrāvika Pärvati, pupil of Rātanai in the year 1665 A. D. In the end of the work the poet gives his detailed dcrount date of completion and name of the place where he composed this work:-- श्रीमूलजी सघ बहु सरस्वति गछि भयो जी मुनिवर बहु चारित स्वच्छ । तह श्री नेमिचद गछपति भयो, तास के पाट जिम सोम जी भाण । श्री जसकीरति मुनिपति भयो, जाण जी तर्क प्रति सास्त्र पुराण ॥१५६।। तास को शिष्य मुनि अधिक प्रवीन, पच महाव्रतस्यो नित लीन । तेरह विधि चारित धरै, व्यजन कमल विकासन चद । ज्ञानगी इम जिमौ प्रति भलोमे, मुनिवर प्रगट मुमि श्री गुणचद ॥१६०।। तासु तणु सिषि तसु पडित कपुरजी चंद, कीयो रास चितिरिवि मानद । जिण गुण वहु मुझ अल्प जी मति, जहि विधि देख्याजी शास्त्र पुरारण । बुध देग्वि को मति हंस, तैसी जी विधि मे कियो जी बखाण ।।१६१।। सोलासे मत्तागाये मासि वैसाखि, पचमी तिथि सूम उजल पावि । नाम नक्षत्र प्राद्रा भलो, बार ब्रहस्पति अधिक प्रधान । गम कियो वामा सुत तणो, स्वामीजी पारसनाथ के थानि ।।१६२।। अहो देस को राजा जी जाति राठौड, मकलजी छत्री या सिर मोड । नाम जसवसिह तमु तपो, तास पानदपुर नगर प्रधान । पौरिग छतीस लोला कर, सौम जी जैसे हो इन्द्र विमान ।।१६३।। सोमै जी तहा जिरण भवण उत्तंग, मइप वेदी जी अधिक प्रमग । जिरण तरणा वि सोम मला जो नर बंद जी मन वच काई । दुख क्लेश न सचर, तीम घरा नव निधि थिति पाइ॥१६४।। वसै जी तहां अधिक महाजन लोक, खरचं जी द्रव्य नित भौगवे भोग । जिण चरणा जी पूजा रचे, दान सुपात्रा जी दिहि बहु भाइ । देव जिमि निति लीला कर, भोगवे सुख निज पुण्य पसाइ ।।१६५।। छद कडा भला एकसौ जारिणः छयासठि अधिक तहि तणु जी प्रमाणि । भाव जी भेद जो त्याका कहा, स्वामी विनती एक कर तुम्ह दास ।

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