Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 331
________________ 314 ] Jaina Grantha Bhandara in Rejasthan. इस प्रकार से नसिकेत मुनियम की पूरी सहित नरक का वर्णन कर फिर जोन जोन कर्म किए से जो भोग होता है सो सब ऋषियो को सुनाने लगे कि गौ, ब्राह्मण, माता, पिता, मित्र, बालक, स्त्री, स्वामी, वृद्ध, गुरु इनका जो बध करते है वो झूठी साक्षी भरते, झूठे ही कर्म मे दिन रात लगे रहते हैं । Hindi Säkitya ka Itihasa P. 422 One example from the book: गुसाईजी येक कथा तुमसो कहु । जो प्राणी या पाछे चोरो करत हैं तीन को प्रसन कहत है। पौर कोई वेद पुराण की पोथी मै । पर गुण मुस गुणं मट गुण भेद होई सो प्राणी काछवा की जोरणी पावत है। पौर परा यो सूत कु पास कर तो कीरं प्राणी काछवा की जोणी पावत है। P.67 The work belongs to the Grantha Bhandar of Jaina temple Badhicanda, Jaipur. The work completes in 74 pages. The last portion of the text is as under: या कथा प्रादी प्रती सो कही है। सहसकीती की टीका है। नंददासजी आपणा सीख को भाषा करी सुणाइ है सो या कथा पुनी बीच है सो प्राणी समत है । ताको कोलाण होत है। सवीधान रहत है। इति श्री नासकेत पुराण ममसत गे रवीमभादे नासकेतु कथा सपुरण । लीखत कालुराम राजोरा छाजुराम का बेटा । ते वाचें तीन राम राम बच । मी० चेत बुदी १० सवत् १७८६ भामरी महाराजा श्री सवाई जैसंगजी वैम य वरम दोई हुमा तलवाणी मै ज अमल महाराजा श्री प्रणदरामजी को। 50 ALANKARA MALA - This is a Hindi work on Alankára Šāstra. It was composed by Sürat Misra in the year 1709 A, D. The manuscript is in the collection of Jaina Grantha Bhandar of Jaisalmer. This is a very simple book on this subject. The poet lived in Agrå and was a Kanaujia Brahmin by caste. The last portion of the work in which the poet gives his own account and the date of the work is as follows: मलकारमाला करी, सूरत मन सुख दाय । परनत बूक परी लखौ, लीजै सुकवि बनाय ॥४८॥ सूरतमित्र कनौजिया, नगर भागर वास । रच्यो ग्रन्थ तिह भूषन, नवल विवेक बिलास ॥४॥

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